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Saturday, January 24, 2009

दर्शन का मतलब

दर्शन का मतलब - "मैं जैसा हूँ।" जीना ही दर्शन है।

जैसे मेरा जीना आपके लिए दर्शन है। आपका जीना मेरे लिए दर्शन है। मेरा आचरण मेरे लिए दर्शन है। मेरे आचरण को मैं जानता हूँ, मानता हूँ - यह मेरा मेरे लिए दर्शन है। मेरे आचरण को जो आप देखते हैं, मैं आपके लिए दृश्य हुआ - वह आपके लिए "प्रेरणा" के रूप में दर्शन है। इस प्रेरणा से आप अध्ययन करते हैं - जिससे यह दर्शन आप का स्वत्व बनता है। आपका जब यह स्वत्व बन जाता है तो यह आपका दर्शन हो गया। फलन में एक ही स्वरूप में दो व्यक्ति हो गए! इस तरह ज्ञान-अवस्था के multiply होने की theory बनी।

अनुभव मूलक विधि से जीवन की दसो क्रियाएं अनुभव के आकार में प्रकट होती हैं। शरीर को जीवन मानते तक जीवन की ४.५ क्रियाएं ही प्रकट होती हैं। जीवन की दसो क्रियाएं प्रकट होने से हम मानवीयता पूर्ण आचरण में पक्के हो गए। मानवीयता पूर्ण आचरण आपके लिए प्रेरणा का स्त्रोत हुआ। मानवीयता पूर्ण आचरण में जीता हुआ मैं अपने स्वरूप में एक दृश्य हूँ, जिस दृश्य को देख कर आप में दर्शन होता है - अर्थात मानवीयता पूर्ण आचरण की आप में स्वीकृति होती है। यह तदाकार तद्रूप विधि से होता है। जिसके फलन में आप स्वयं दर्शन-स्वरूप हो जाते हो।

हम माने या न माने - व्यापक वस्तु में हम भीगे हैं ही। तद्रूपता के प्रमाण रूप में हम हैं ही। होने के प्रमाण को हमें खोजना नहीं है, मात्र अनुभव करना है, प्रमाणित होना है। इसको अनुभव करने के लिए - अध्ययन, अध्ययन के फलन में बोध, वस्तु-बोध के बाद अनुभव, अनुभव के बाद अनुभव-प्रमाण बोध। इसी विधि से हम प्रमाणित होते हैं। यही विधि है इसका। यह तार्किक, व्यवहारिक, और तात्विक रूप में पूरा होता है - इसीलिये मनुष्य को स्वीकार होता है।

- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (जनवरी २००७, अमरकंटक)

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