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Monday, January 12, 2009

साम्य ऊर्जा - कार्य ऊर्जा

सत्ता (व्यापक) में संपृक्त प्रकृति ही अस्तित्व समग्र है।

प्रकृति में जो क्रियाशीलता है, उसके मूल में साम्य-ऊर्जा है। व्यापक ही साम्य ऊर्जा है। साम्य-ऊर्जा सम्पन्नता से प्रकृति की इकाइयों में चुम्बकीय बल सम्पन्नता है। चुम्बकीय बल सम्पन्नता से ही प्रकृति में क्रियाशीलता है। क्रियाशीलता का स्वरूप है - श्रम, गति, परिणाम। क्रियाशीलता से जो ध्वनि, ताप, और विद्युत निष्पन्न होता है - वह कार्य ऊर्जा है। मूलतः परमाणु की क्रियाशीलता से ही ये (ध्वनि, ताप, विद्युत) निष्पन्न होते हैं। कार्य-ऊर्जा ही आचरण है।

चैतन्य-प्रकृति (जीवन) में भी साम्य-ऊर्जा सम्पन्नता से चुम्बकीय-बल सम्पन्नता है - जिससे उसमें ध्वनि, ताप, और विद्युत रहता ही है। जीवन में यह ध्वनि, ताप, और विद्युत - आशा, विचार, और इच्छा के स्वरूप में प्रकट हो जाता है। इनके साथ चैतन्य में ज्ञान भी शुरू होता है। जीवन में जो "ज्ञान" है, वह है - पहले ४ विषयों (आहार, निद्रा, भय, मैथुन) का ज्ञान, फ़िर ५ संवेदनाओ (शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध) का ज्ञान, फ़िर जीव-चेतना का ज्ञान, फ़िर मानव-चेतना, देव-चेतना, और दिव्य-चेतना का ज्ञान। भ्रमित-मानव की क्रिया-शीलता से जो कार्य-ऊर्जा (या आचरण) निष्पन्न होती है - वह जीव-चेतना का प्रकाशन है। जागृत-मानव की क्रियाशीलता से जो कार्य-ऊर्जा (या आचरण) निष्पन्न होती है - उसका स्वरूप है, नियम-नियंत्रण-संतुलन-न्याय-धर्म-सत्य। जागृत-मानव की कार्य-ऊर्जा का प्रकाशन ही मानवीयता पूर्ण आचरण है।

मनुष्य ने जड़-प्रकृति की कार्य-ऊर्जा के प्रकाशन (ध्वनि, ताप, और विद्युत) को develop करने की विधियों को कारीगारी विधि से पहचाना है। इसका सामरिक तंत्रों (युद्ध) में जो उपयोग किया - वह नकारात्मक हुआ। समाज-गति (दूर-गमन, दूर-दर्शन, और दूर-श्रवण) में जो उपयोग किया - वह सकारात्मक हुआ।

कार्य-ऊर्जा ही आचरण है। आचरण ही नियम है। नियम सभी जगह में आचरण के स्वरूप में व्यापक है। आचरण त्व सहित व्यवस्था के स्वरूप में होता है। यह प्रकृति की हर जड़ और चैतन्य इकाई के साथ है।

साम्य-ऊर्जा सम्पन्नता से चुम्बकीय बल सम्पन्नता है। चुम्बकीय बल सम्पन्नता से कार्य ऊर्जा है। ये दो links न भौतिक-वादियों को समझ में आए, न आदर्श-वादियों को समझ में आए। भौतिक-वादियों ने मान लिया - कार्य-ऊर्जा से चुम्बकीय बल सम्पन्नता है। जबकि वास्तविकता इसका उल्टा है।

- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (दिसम्बर २००८, अमरकंटक)

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