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Saturday, January 3, 2009

अनुसंधान क्यों, क्या, और कैसे - भाग ५

कुल मिला कर "अध्यात्मवाद की रहस्यमयता" मेरे अनुसंधान का कारण रहा। अस्तित्व में रहस्य होने का कोई कारण नहीं है। अध्यात्म या ब्रह्म जैसे वस्तु का अव्यक्त रहने का कोई कारण नहीं है। अनुसंधान से पता चला - ब्रह्म सभी वस्तुओं को प्राप्त है। प्राप्त का अनुभव करने का मानव के पास अधिकार है। वह अनुभव सह-अस्तित्व स्वरूप में होता है। यह मैंने अनुभव किया है।

इस प्रकार सह-अस्तित्व समझ में आने के बाद उसको literature स्वरूप में दर्शन, वाद, और शास्त्र रूप में दिया। दर्शन रूप में नाम दिया गया है - मानव व्यवहार दर्शन, मानव कर्म दर्शन, मानव अभ्यास दर्शन, और अनुभव दर्शन। उसके बाद विचार में नाम दिया - समाधानात्मक भौतिकवाद , व्यवहारात्मक जनवाद , और अनुभवात्मक अध्यात्मवाद। उसके बाद शास्त्रों का नाम दिया - आवर्तनशील अर्थशास्त्र , व्यवहारवादी समाजशास्त्र , मानव संचेत्नावादी मनोविज्ञान। उसके बाद संविधान लिखा - मानवीय आचार संहिता रुपी संविधान। उस ढंग से मानव को जो आवश्यकता है - आचरण से संविधान तक, संविधान से व्यवस्था तक - हर आदमी जो जांच सकता है, उसका पूरा व्याख्या प्रस्तुत किया। उसमें धीरे-धीरे लोगों का भरोसा तो बन ही रहा है। इस प्रकार जितने भी लोग इस विचार से जुड़ रहे हैं, उनका भरोसा की बात तो पूरा पड़ता है। इस बात को लेकर जीवन-विद्या का कार्यक्रम जहाँ-जहाँ होता है, जीवन-विद्या को जो-जो सुनते हैं, उनमें नवीन उत्साह जगता है। उसके बाद जिज्ञासा के आधार पर आगे विद्वान होना बनता ही है।

इस तरह अनुसंधान की यह छोटी सी बात हुई। केवल मुझ में स्वयं में रहस्यवाद से पैदा हुआ संकट और भौतिकवाद से पैदा हुआ संकट (धरती बीमार होने के रूप में ) - इन दोनों से मुक्ति पाने के लिए प्रयत्न, उस प्रयत्न में मेरी सफलता समाधि-संयम पूर्वक होना, उसको मानव को अर्पित करने के लिए प्रयत्न, और यहाँ आप तक पहुँचने का सौभाग्य।

जय हो! मंगल हो! कल्याण हो!



- अक्टूबर २००५ मसूरी में जीवन-विद्या राष्ट्रीय सम्मलेन में बाबा श्री नागराज शर्मा के संबोधन पर आधारित।

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