शब्द को बोलना समझ का प्रमाण नहीं है। शब्द को बोल कर बता देना कोई "समझ" है - यह मैं स्वीकार नहीं करता। समझ को जीना ही समझ का प्रमाण है। समझ को जीने का डिजाईन जो मैंने प्रस्तुत किया है - वह है, समाधान-समृद्धि पूर्वक जीना। अब आगे पीढी और बतायेगी यदि इसके अलावा भी समझ को जीने का कोई डिजाईन हो सकता है तो! मैं तो समाधान-समृद्धि पूर्वक जीने के डिजाईन का ही prophecy करूंगा। हर समझदार व्यक्ति समाधान का एक factory है। सामाधानित होने के बाद ही व्यक्ति अपने समृद्धि पूर्वक जीने के तरीके को डिजाईन करता है।
समाधान-समृद्धि पूर्वक जीने का परिणाम है - उपकार। उपकार है - दूसरों को समझदार बनाना, और समृद्धि के लिए अपने प्रमाणों से प्रेरणा देना। प्रमाण नहीं है तो प्रेरणा क्या देंगे?
समाधान-समृद्धि पूर्वक जीने की इच्छा समझदारी के बाद सबके पास आता है। पूरी बात समझे बिना समाधान-समृद्धि पूर्वक जीने का चौखट बनता ही नहीं है। सुविधा-संग्रह ही रह जाता है। समाधान-समृद्धि पूर्वक जीना ही होगा - यह बात इस प्रस्ताव को समझने वाले लोगों में खुल कर आ रही है।
- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (दिसम्बर २००८, अमरकंटक)
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