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Saturday, January 3, 2009

समाधि के आगे

प्रश्न: समाधि में आपकी आशा-विचार-इच्छा चुप हो जाने के बाद भी आगे की बात के लिए आप में किस तरह इच्छा जगी?

उत्तर: समाधि की स्थिति में मैं १२ से १८ घंटी तक रहता था, इंतज़ार में - अब ज्ञान होगा, अब ज्ञान होगा। यह बात शुरुआत से ही रहा। समाधि में मेरी आशा, विचार, इच्छा चुप हो गयी - यह बात मुझे स्पष्ट हो गयी थी। चुप होने के बाद १२-१८ घंटे बाद मुझको जब शरीर-अध्यास आता था, तब मैं अपनी समाधि की स्थिति का स्वयं मूल्यांकन करता था। (समाधि के बाद जो वापस शरीर का अध्यास होता है, वह स्वयं के द्वारा लिए गए संकल्प के आधार पर ही होता है कि हम इतनी देर समाधि में रहेंगे। उस समय के बाद अपने आप शरीर का अध्यास होता है। )मूल्यांकन करने पर यही निकलता था कि ज्ञान नहीं हुआ। यह बात हर दिन होती थी। फ़िर ज्ञान के लिए हर दिन फ़िर से समाधि की स्थिति में जाना, पुनः शरीर-अध्यास होने पर मूल्यांकन कि ज्ञान नहीं हुआ। यह होते-होते जब बहुत दिन महीने बीत गए तो संयम के लिए प्रवृत्ति बनी। समाधि होने को verify करने के लिए मैंने संयम किया। अपने मित्रों को अपने समाधि होने की गवाही जो देनी थी।

मुझे यह तो कल्पना भी नहीं थी - संयम से हम कोई चीज पा जायेंगे। यह बात तो थी ही नहीं। समाधि की गवाही देने के लिए मैंने संयम किया। जिसके फलस्वरूप अध्ययन हुआ। यह ज्ञान हुआ। वह अध्ययन मानव की बपौती है - ऐसा मेरी स्वीकृति हुई। उसके आधार पर मानव के हाथों में अर्पित करने का प्रयास मैं कर रहा हूँ।

समाधि की स्थिति में शरीर का ज्ञान नहीं रहता है, देश (स्थान) का ज्ञान नहीं रहता है, और समय (काल) का ज्ञान नहीं रहता है। ये तीनो बात लुप्त रहता है, या छुपा हुआ रहता है। इसको मैं अच्छे से देखा हूँ। समाधि के सम्बन्ध में हमारे शास्त्रों में भी ऐसा ही लिखा है। गीता में समाधि के बाद क्या होता है, उसको लेकर लिखा है - "ब्रह्म भूतं प्रसन्नात्मा नशोच्यति नकान्क्ष्यती"। अर्थात - यदि ब्रह्म-ज्ञान हो जाता है, तो उस व्यक्ति में चाहत ख़त्म हो जाता है। "पंचदशी" नामक ग्रन्थ - जिसको वेदान्त का आरंभिक ग्रन्थ मानते हैं, उसमें लिखा है - "छिद्यन्ते हृदय ग्रंथि, भिद्यंती सर्व संशय, क्षिद्यंती सर्व कर्माणि, तस्मिन् दृष्टा परावरे।" अर्थात - ह्रदय में हमारे जो संशय रहे वे सब ख़त्म हो जाते हैं, गांठे जो रहे वे समाप्त हो जाते हैं, कर्म-बंधन समाप्त होता है। उसको व्याख्या देते हुए ऐसा कहा है - जीव में जो कर्म-बंधन हैं, विचार-बंधन हैं - ये सब से छूट जाते हैं। समाधि स्थिति में ऐसा होता है - लिखा है।

समाधि के बाद मुझको जो हुआ, वह है - (उस स्थिति में) भूत और भविष्य की पीड़ा नहीं है, और वर्तमान का विरोध नहीं है। शिकायत से मुक्त होने की स्थिति में मैं आ गया। समाधि से क्या फायदा हुआ? संसार के प्रति मेरा शिकायत नहीं रहा।

- अक्टूबर २००५ मसूरी में जीवन-विद्या राष्ट्रीय सम्मलेन में बाबा श्री नागराज शर्मा के संबोधन के बाद लोगों के साथ हुए संवाद पर आधारित

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