This blog is for Study of Madhyasth Darshan (Jeevan Vidya) propounded by Shree A. Nagraj, Amarkantak. (श्री ए. नागराज द्वारा प्रतिपादित मध्यस्थ-दर्शन सह-अस्तित्व-वाद के अध्ययन के लिए)
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Tuesday, January 6, 2009
नित्य वर्तमानता - भाग ३
"काल" क्या है?
काल के बारे में प्रतिपादित किया है:-
क्रिया की अवधि = काल।
यह अवधि मानव का ही बनाया माप-दंड (measuring scale) है। अस्तित्व में काल खंड-खंड रूप में मिलता नहीं है।
अस्तित्व शुद्धतः नित्य वर्तमान है।
यह बात आपके ह्रदय में पहुंचना चाहिए। अस्तित्व शुद्धतः नित्य वर्तमान है। अस्तित्व सह-अस्तित्व स्वरूप में नित्य-वर्तमान है, वैभव है।
मनुष्य को थोड़ा समय, ज्यादा समय कहने के लिए काल-खंड की गणना करने की आवश्यकता पडी। जैसे धरती एक अपने में घूर्णन क्रिया करता है। एक प्रातः काल से दूसरे प्रातः काल तक। इसको २४ भाग किया। फ़िर हर भाग का ६० विभाग किया। उस हर विभाग का पुनः ६० विभाग किया। ऐसा करते गए। ऐसा करते-करते एक ऐसी जगह में आ गए कि यह कह दिया - काल है ही नहीं! जबकि धरती पर नित्य सवेरा होता ही रहता है! इस तरह विज्ञान ने कितने झूठ के आधार पर अपना बात खड़ा किया है - यह सोचने का मुद्दा है। सोचने पर अफ़सोस भी होता है - कैसे फंस गए?
विज्ञान विखंडन-विधि से फंसा है। किसी बात का चीर-फाड़ करना, बाल की खाल निकालना, इस विधि से फंसा है। विखंडन विधि से ही विज्ञान fission fusion की जगह में पहुँचा। यह धरती के ही विनाश का स्वरूप बन गया। अब उस जगह सोचने की आवश्यकता आ गयी।
हम काल को उपयोगिता, सदुपयोगिता, और प्रयोजनशीलता के आधार पर समझ सकते हैं। काल का क्या प्रयोजन है? समय-बद्ध विधि से हम श्वास लेते हैं। समय-बद्ध विधि से हम भोजन करते हैं। समय-बद्ध विधि से हम उत्पादन-कार्यकलाप करते हैं। इसके लिए 'काल' का ज्ञान है।
विखंडन कोई सकारात्मक ज्ञान सिद्ध नहीं हुआ। विखंडन समस्याकारी ही सिद्ध हुआ है। विखंडन विधि से हम सभी तरह के तर्क में फंस कर समाधान पाने की जगह से वंचित रह गए हैं। विखंडन विधि समाधान से विमुख होने से ही हम समस्या में फंसने की जगह में आ गए हैं। कितनी भी विखंडन विधि है - उससे समाधान मिलता नहीं है। इस बात को आप देख सकते हैं, प्रयोग कर सकते हैं, जांच सकते हैं, और निर्णय कर सकते हैं। अभी सर्वाधिक पढ़े-लिखे, आधुनिक विज्ञान की शिक्षा प्राप्त किया हुआ व्यक्ति का मन विखंडन-विधि में ही लगा है। पढ़े-लिखे हुए व्यक्ति को सर्वाधिक उपयोगी होना चाहिए। पर यह कहाँ हो पा रहा है? जो आज सर्वाधिक पढ़े-लिखे, बुद्धिमान माने जाते हैं - उनसे उपकार कहाँ हुआ? विखंडन विधि से त्रस्त होने के कारण ही ये उपकार से नहीं जुड़ पा रहे हैं। विखंडन विधि से न परिवार बन सकता है, न समाज बन सकता है। न हम समाधानित हो पायेंगे, न संतुष्ट हो पायेंगे। इसीलिये विखंडन समस्या का कारण हुआ।
विखंडन विधि का दृष्टा बना रहना बुरा नहीं है। लेकिन आचरण में हम सह-अस्तित्व विधि से ही अखंडता और व्यवस्था पूर्वक जी पाते हैं। जैसे - मनुष्य का शरीर। विखंडन विधि से हम शरीर का संचालन तो नहीं कर पायेंगे। विखंडन विधि से जीवन का संचालन नहीं हो सकता। विखंडन विधि से हम समाधान को प्राप्त नहीं कर सकते। विखंडन विधि से हम नियम पूर्वक आचरण नहीं कर पायेंगे।
वर्तमान में अखंडता विधि से ही हम निरंतर समाधान को पाते हैं। नित्य वर्तमान में ही जागृति सहज वैभव हो पाता है।
- अक्टूबर २००५ में जीवन-विद्या राष्ट्रीय सम्मलेन, मसूरी में बाबा श्री नागराज शर्मा के उदबोधन पर आधारित।
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