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Friday, January 23, 2009

अभिव्यक्ति, सम्प्रेश्ना, प्रकाशन

अनुभव मूलक विधि से जीवन की दसो क्रियाओं में अनुभव प्रभावित हो जाता है। दसो क्रियाओं में अनुभव-प्रमाण ही प्रभावित होता है।

अनुभव मूलक विधि से:

आशा विधा से मूल्यों का पहचान और निर्वाह
विचार विधा से संबंधों का पहचान और निर्वाह
इच्छा विधा से समाधान का पहचान और निर्वाह
बोध विधा से सत्य-बोध का पहचान और निर्वाह
अनुभव विधा से सह-अस्तित्व रूप में जो परम-सत्य का अनुभव किए रहते हैं, उसका पहचान और निर्वाह

अनुभव मूलक विधि से मनुष्य जो व्यक्त होता है, उसका स्वरूप है - अभिव्यक्ति, सम्प्रेश्ना, और प्रकाशन।

अभिव्यक्ति - सत्य और समाधान के साथ व्यक्त होना अभिव्यक्ति है। बुद्धि में जो सत्य-बोध हुआ रहता है, उसको दूसरे व्यक्ति को बोध कराने के लिए जब समाधान के अर्थ में व्यक्त करते हैं - उसे अभिव्यक्ति कहते हैं। अभ्युदय (सर्वतोमुखी समाधान) के अर्थ में व्यक्त होना ही अभिव्यक्ति है। सर्वतोमुखी समाधान के रूप में ही सह-अस्तित्व आपको बोध होता है। समस्या के रूप में सह-अस्तित्व आपको बोध नहीं होता। यह मुख्य बात है। अनुभव मूलक विधि से जो सत्य-बोध हुआ, उसका प्रयोजन है - सर्वतोमुखी समाधान के रूप में प्रमाणित होना। अभिव्यक्ति का मतलब - सत्य का सर्वतोमुखी समाधान के स्वरूप में व्यक्त होना।

सम्प्रेश्ना - समाधान और न्याय के साथ व्यक्त होना सम्प्रेश्ना है। यह चित्त में होने वाले अनुभव-मूलक चिंतन का फलन है। यह अनुभव मूलक इच्छा के रूप में व्यक्त होता है। सम्प्रेश्ना संबंधों में समाधान को न्याय के अर्थ में जीने के रूप में होता है। सत्य और समाधान के जुड़ने के बाद न्याय होता ही है। सत्य और समाधान के जुड़े बिना न्याय का प्रश्न ही नहीं! सम्प्रेश्ना का मतलब - सत्य और समाधान का न्याय के स्वरूप में व्यक्त होना।

प्रकाशन - न्याय और समृद्धि के साथ व्यक्त होना प्रकाशन है। प्रकाशन में न्याय को समृद्धि के अर्थ में व्यक्त करते हैं। न्याय को प्रमाणित करना समृद्धि के साथ ही होता है। प्रकाशन का मतलब - न्याय, समाधान (धर्म), और सत्य का समृद्धि के साथ व्यक्त होना।

इस तरह अनुभव-मूलक विधि से एक ही व्यक्ति द्वारा न्याय, धर्म (समाधान), और सत्य व्यक्त होने लगता है।

- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (जनवरी २००७, अमरकंटक)

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