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Saturday, February 27, 2010

जीवन के शक्ति और बल - भाग ५




सत्ता में मैं अनुभूत हूँ.  सत्ता में मैं समग्रता का अनुभव करता हूँ.  सत्ता में समग्रता के साथ मैं व्यवस्था का अनुभव करता हूँ.  सत्ता (व्यापक वस्तु) को हरेक परस्परता के बीच प्रमाणित होने की विधि को मैं प्रस्तुत किया हूँ.  सत्ता (व्यापक वस्तु) को बोध करने के बाद एक-एक वस्तु को बोध करना बन जाता है.  एक-एक वस्तु का बोध करने के लिए उसके रूप, गुण, स्वभाव और धर्म का बोध करना होता है.  सत्ता का बोध करने के लिए उसकी सर्वत्र विद्यमानता, पारर्शीयता और पारगामीयता का बोध करने की आवश्यकता है.  इसको मैंने अध्ययन कराके देखा है - लोगों को यह बोध होता है.  इस आधार पर मैं यह कहता हूँ - सबको यह बोध होगा.  

अनुभव दर्शन परम-सत्य के स्वरूप को बताता है.  व्यवहार दर्शन न्याय के स्वरूप को बताता है.  कर्म दर्शन और अभ्यास दर्शन धर्म-सहज विधि से जीने के स्वरूप को बताता है.  ये चारों अध्याय एक दूसरे से अंतर्सम्बंधित हैं.  

सत्ता को "अध्यात्म" भी नाम दिया है.  सत्ता मध्यस्थ है.  अध्यात्म का परिभाषा दिया - सभी आत्माओं का आधार.  परमाणु के मध्यांश को आत्मा बताया.  आत्मा मध्यस्थ क्रिया करता है.  सम-विषम का बाधा आत्मा पर नहीं होता.  (जीवन परमाणु में) मध्यस्थ क्रिया के अनुसार बुद्धि, चित्त, वृत्ति और मन काम करने लग जाते हैं, उसको हम जागृति कहते हैं.  मैं स्वयं उसका प्रमाण हूँ.

- श्री ए नागराज के साथ संवाद पर आधारित (आन्वरी आश्रम, १९९९)

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