स्थिति = होना
गति = रहना
मिट्टी से लेकर मनुष्य तक किसी भी वस्तु को आप देख लीजिये - उसका "होना" देखा जाता है, उसका "रहना" पाया जाता है। सभी जड़-चैतन्य प्रकृति का होना-रहना पाया जाता है। मनुष्य का नियति-विधि से प्रगटन-क्रम में धरती पर "होना" देखा जाता है। मनुष्य के अभी तक के इतिहास में उसका जीव-चेतना विधि से "रहना" पाया जाता है।
मिट्टी का होना-रहना देख कर मनुष्य का मानवीयता स्वरूप में रहना बनेगा नहीं। मिट्टी का होना-रहना मानव के लिए अनुकरणीय नहीं है। जानवर का होना-रहना मनुष्य के लिए अनुकरणीय नहीं है। मनुष्य-प्रकृति जीव-संसार के बाद धरती पर प्रगट हुआ। मनुष्य-प्रकृति ने अपनी मौलिकता को अभी तक पहचाना नहीं है। मनुष्य-प्रकृति जब अपनी मौलिकता को पहचानेगा तभी मानव-चेतना विधि से जियेगा। मनुष्य की मौलिकता "मानवीयता" ही है। मनुष्य-प्रकृति द्वारा अपनी मौलिकता को पहचान कराने के लिए ही मध्यस्थ-दर्शन के अध्ययन का प्रस्ताव है।
- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (दिसम्बर २००९, अमरकंटक)
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