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Sunday, February 21, 2010

जीवन और शरीर का सम्बन्ध -भाग ३




ज्ञानवाही तंत्र और क्रियावाही तंत्र पूरे शरीर में फैले हैं.  क्रियावाही तंत्र का संचालन सोते समय भी होता है, बेहोशी में भी होता है.  संवेदनाओं को जब भी प्रमाणित करना होता है - वह ज्ञानवाही तंत्र द्वारा ही होता है.  चिकित्सा विज्ञान में ज्ञानवाही तंत्र को ही sensory function और क्रियावाही तंत्र को ही motor function कहते हैं.  
प्रश्न:  ज्ञानवाही तंत्र और क्रियावाही तंत्र का संयोजन कहाँ पर है?

उत्तर:  ज्ञानवाही और क्रियावाही तंत्र का संयोजन मेधस में है.  मानव शरीर रचना एक सम्पूर्ण है.  इस सम्पूर्णता के अंगभूत इसकी एक-एक क्रियाएं होती हैं.  ज्ञानवाही तंत्र के आवेशित होने पर क्रियावाही तंत्र का आवेशित होना इसी संयोजन के आधार पर होता है.

प्रश्न:  प्राण-वायु का क्या स्वरूप है?

उत्तर: फेंफडों में जा कर के छन के शरीर की सम्पूर्ण प्राणकोशिकाओं के लिए जो वायु की ज़रुरत है - उसका नाम है प्राण-वायु.  प्राण-वायु के अलावा हमारे नाक-मुंह से कुछ भी अन्दर पहुँचता है, उसको फेंफडे छान देते हैं.  छान करके जितना प्राणवायु प्राणकोशिकाओं के लिए आवश्यक है उसको रक्त द्वारा भेज देता है.  रक्त शरीर के हर स्थान पर पहुँचता है, जहाँ प्राणकोशिकाएं उस प्राणवायु का सेवन करते हैं, और स्वस्थ रहते हैं.  मेधस में भी प्राणवायु इसी विधि से पहुँचता है.  

प्राणवायु न मिलने पर प्राणकोशिकाएं मर जाते हैं.  प्राणकोशिकाओं को जिस प्रकार की वायु चाहिए उसकी संप्राप्ति के लिए प्राणतंत्र है.  यह प्राणतंत्र फेंफडे से सम्बंधित है.  फेंफडे में ही वायु का संशोधन होता है.  प्राणवायु अलग करने के बाद वह शरीर की सभी प्राणकोशिकाओं के लिए सुगम हो जाता है.  प्राणकोशिकाओं से निष्काषित और हमारे भोजन को पचाने के बाद "अपान वायु" तैयार होता है.  अपान वायु का शरीर द्वारा निष्कासन हो जाता है.  इसी को हम "प्राणवायु संचार विधि" कहते हैं.  

व्यवस्था सब सिलसिले से है.  इसमें सब एक ईंटा के बाद दूसरा ईंटा जुड़ा हुआ है.  कहीं कोई छेद नहीं है.

श्री ए नागराज के साथ संवाद पर आधारित (आन्वरी, १९९९)  

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