अभी तक मानव की इच्छाओं का शरीर संवेदनाओं और विषय क्रियाकलाप के साथ समर्थन रहा है. इच्छाओं का जब ज्ञानगोचर के साथ समर्थन होता है तो मन उसके अनुसार काम करता है. वही मन लगने का मतलब है. मन लगने पर ही शोध होता है.
प्रश्न: यहाँ आप "मन लगना" किस वस्तु को कह रहे हैं?
उत्तर: जीवन में मन होता है, जिसमे आशा होती है. यह क्रिया सबके साथ "जीने की आशा" स्वरूप में जुड़ा है. जीने की आशा के साथ शरीर संवेदनाओं को जीवन मान लिया. जीवन का ऐसा मानना या समर्थन करना इच्छा तक जाता है, इससे आगे जाता नहीं है. इसलिए साढ़े चार क्रिया में रह गए. साढ़े चार क्रिया से आगे जाने के लिए ज्ञानगोचर विधि को अपनाना ही होगा. अपनाने के लिए मन को लगाना ही होगा. ज्ञान का प्रस्ताव अस्तित्व सहज है, जीवन सहज है - इसलिए मन लगता है. क्योंकि सुखी होने की चाहत मन में ही बनता है. सुखी होने की चाहत के सफल होने के लिए मन लगता है. मन लगता है तो दसों क्रियाएं क्रियाशील होने का कार्यक्रम शुरू हो जाता है. यह ज्ञानगोचर विधि से होगा, इन्द्रियगोचर विधि से होगा नहीं.
- श्री ए नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (दिसम्बर २००८, अमरकंटक)
No comments:
Post a Comment