प्रश्न: श्रम-गति-परिणाम सिद्धांत को समझा दीजिये.
उत्तर: व्यापक वस्तु में भीगे रहने से प्रकृति में ऊर्जा संपन्नता है. ऊर्जा सम्पन्नता का प्रकटन बल के रूप में है. बल का प्रकटन गति के रूप में है. गति का प्रकटन परिणाम के रूप में है.
परिणाम और श्रम "गति" के रूप में प्रकट होता गया.
श्रम और गति "परिणाम" के रूप में प्रकट होता गया.
गति और परिणाम "श्रम" के रूप में प्रकट होता गया.
यह स्वयंस्फूर्त होता है. इस सिद्धांत से प्रकृति की हर इकाई स्वयंस्फूर्त काम कर रही है. हर वस्तु सत्ता में भीगे रहने से ऊर्जा-संपन्न, डूबे रहने से क्रियाशील और घिरे रहने से नियंत्रित है. हर वस्तु, हर परमाणु अपने में नियंत्रित है, क्रियाशील है, बल संपन्न है. यह तीन बात हरेक वस्तु में दिखाई पड़ती है. इससे प्रकृति की सम्पूर्ण क्रियाएं स्वयंस्फूर्त हैं. ऐसा नहीं है कि पतंग जैसे सबकी डोर कहीं से बंधी हो और वो चला रहा हो! स्वयंस्फूर्त रूप में सब क्रिया है इस में हम विश्वास रख सकते हैं. इससे आशय है - मनुष्य अपने में स्वयंस्फूर्त विधि से व्यवस्था में जी जाए. मानव जब व्यवस्था में जियेगा तो शुभ घटित होगा - उससे पहले शुभ घटित होने वाला नहीं है.
- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००५, रायपुर)
No comments:
Post a Comment