प्रश्न: आप "वास्तविकता" किसे कहते हैं?
उत्तर: चार अवस्थाएं या चार पद वास्तविकता हैं. वस्तुएं जो कुछ भी प्रकट कर रही हैं, वह सब वास्तविकता है. उसमे से मानव को जाग्रति के पद में व्यक्त होना वास्तविकता कहा है. भ्रमित हो कर जो मानव व्यक्त होता है, उसको हमने वास्तविकता कहा नहीं है. इसलिए दुःख को हमने वास्तविकता नहीं कहा है.
यह बुद्ध जो "दुःख आर्यसत्य है" कह कर गए, उससे भिन्न है. हम यहाँ कह रहे हैं - दुःख एक "घटना" है. मानव जाति की नासमझी से दुःख है. जिससे हम मुक्ति पाना चाहते हैं वह सब घटना ही है. घटनाएं परम्परा नहीं हैं. परम्परा वह है जिसकी निरंतरता हो.
प्रश्न: दुर्घटनाओं को आप कैसे देखते हैं?
उत्तर: जितने भी दुर्घटनाएं हैं वे मानव जाति की नासमझी से ही होते हैं. समझ के जीने में दुर्घटना का कोई स्थान ही नहीं है.
- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००५, रायपुर)
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