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Friday, August 9, 2019

प्रमाण : अनुभव, व्यव्हार, प्रयोग




प्रमाण को लेकर आपने सूत्र दिया है: -

अनुभव ही प्रमाण परम 
प्रमाण ही समझ ज्ञान
समझ ही प्रत्यक्ष
प्रत्यक्ष ही समाधान, कार्य-व्यव्हार
कार्य-व्यव्हार ही प्रमाण 
प्रमाण ही जागृत परम्परा
जागृत परम्परा ही सहअस्तित्व 

इसको और स्पष्ट कर दीजिये.

उत्तर:  अब प्रमाण पूर्वक जीने की बात आयी है.  प्रमाण है - अनुभव प्रमाण, व्यव्हार प्रमाण और प्रयोग प्रमाण

हमारे आवश्यक वस्तुओं को बनाने में प्रयोग होगा.  व्यव्हार प्रमाण मानव के साथ होगा.  अनुभव प्रमाण व्यवस्था के रूप में होगा.  प्रयोग, व्यव्हार और व्यवस्था कैसा होगा, उसको प्रमाणित करने का सूत्र-व्याख्या भी प्रस्तुत कर दिए.

मानव का अनुभव-प्रमाण पूर्वक सार्वभौम व्यवस्था में जीना बनता है.  व्यव्हार-प्रमाण पूर्वक अखंड-समाज में मानव के साथ जीना बनता है.  प्रयोग-प्रमाण पूर्वक सामान्याकान्क्षा (आहार, आवास, अलंकार) और महत्त्वाकांक्षा (दूरगमन, दूरश्रवण, दूरदर्शन) की वस्तुओं का उत्पादन पूर्वक उपयोग, सदुपयोग, प्रयोजनशील बनाना बनता है.  इस प्रकार यदि हम इन तीनों प्रमाणों के साथ जीने का परम्परा बनाते हैं तो मानव का समाधान पूर्वक, समृद्धि पूर्वक व्यवस्था में जीना बनता है.

प्रश्न:  मध्यस्थ दर्शन के प्रकटन से पहले प्रमाण का क्या स्वरूप रहा?

उत्तर:  इसके पहले हमारे पूर्वजों ने (आदर्शवाद में) प्रमाण के बारे में कुछ प्रस्तुत किया.  पहले "शब्द प्रमाण" बताया.  शब्द-प्रमाण को लेकर एक बहुत भारी उपनिषद ही लिखा है - उसका नाम है "कठोपनिषद".  उसमे प्रतिपादित किया है - प्रणव शब्द (ॐ) को शब्द माना.  इसके बाद वेद को शब्द माना.  ब्रह्म सूत्र में लिखा है - "ईक्षतेर नाशब्दम" (ब्र. सू. १, १.५)  जिसका शंकराचार्य ने व्याख्या दिया - ये तीनों वेदों के शब्दों से इस को वर्णन नहीं किया जा सकता.  इस प्रकार वेद को और प्रणव (ॐ) को शब्द माना.  उसके आधार पर कहा - शब्द ही प्रमाण है.

उसके संरक्षण में व्याकरण आयी.  व्याकरण में शब्द को ही "पद" माना.  शब्द को एक ने "प्रमाण" माना और दूसरे ने "पद" माना.  इससे जो उथलपुथल (वाद-विवाद) हुई वह अपने में एक इतिहास ही है.

इसके बाद कहा - आप्त-वाक्य प्रमाण है.

उसके बाद कहा - प्रत्यक्ष अनुमान आगम प्रमाण है.

उसके बाद चौथा कहा - शास्त्र प्रमाण है.

करीब-करीब ये सभी शब्द-प्रमाण ही हैं.

विज्ञानियों ने प्रयोग को प्रमाण कहा.  प्रयोग में यंत्र रहा.  यंत्र जो कहेगा वह सत्य है - ऐसा माना.  उसी आधार पर हमारी स्वास्थ्य को बताने के लिए भी यंत्र को लाये.  यंत्र प्रमाण के तले अपने सुखी होने के लिए हम बहुत सारा प्रयत्न कर रहे हैं.  उसमे कुछ में आसार दिखता है, कुछ में आसार भी नहीं दिखता - ये दोनों हो रहा है.  होते-होते हम विज्ञान विधि से कहीं पहुंचेंगे.

आदर्शवाद और भौतिकवाद (विज्ञान) ने प्रमाण को लेकर जो कहा उसके विकल्प में हम ये तीन प्रमाणों (अनुभव प्रमाण, व्यव्हार प्रमाण और प्रयोग प्रमाण) को प्रतिपादित कर रहे हैं.  इस तरह विकल्प में प्रमाण बदला है, प्रमाण की विधि बदली है, प्रमाण की स्वीकृतियाँ बदली हैं.  अनुभवमूलक विधि से प्रमाण होना है या प्रत्यक्ष-अनुमान-आगम विधि से होना है या शब्द-प्रमाण विधि से होना है - उस पर हमे सोचने की आवश्यकता है.  सोचने पर यदि किसी व्यक्ति का निष्कर्ष निकलता है कि अनुभवमूलक विधि से ही प्रमाण पूरा पड़ता है तो वह निष्ठावान होगा ही.  ऐसा मेरा सोचना है.

प्रमाण के लिए क्या कहा? - "समझ के करो!"

समझ क्या चीज़ है? - "ज्ञान"

ज्ञान क्या चीज़ है ? - "अस्तित्व दर्शन ज्ञान, जीवन ज्ञान, मानवीयता पूर्ण आचरण ज्ञान"

इसको अध्ययन किया जा सकता है - यह आपको भी विश्वास हुआ है, मुझको भी विश्वास हुआ है.  अध्ययन आप भी कराते हो, अध्ययन मैं भी कराता हूँ.

ज्ञान ही है जो अध्ययन कराया जा सकता है.  बाकी को अध्ययन कराना बनता भी नहीं है.  अभी की "ज़बरदस्ती" है - जो अध्ययन कराना बनता नहीं है उसको हम अध्ययन मान रहे हैं, जो अध्ययन होता है उसको हम अध्ययन मान नहीं रहे हैं.  जबरदस्ती किया है इसलिए दुःख पाया भी है.

- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (रायपुर, २००५)

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