प्रश्न: "विकल्प" से क्या अर्थ है?
उत्तर: विकल्प से मतलब है: - विगत से जो कुछ भी हमको दर्शन मिला, सोच-विचार मिला, आचरण मिला, संविधान मिला, व्यवस्था मिला और जो कुछ भी मिला - उसका यह विकल्प है.
दर्शन, सोच-विचार के विकल्प को लेकर हमने स्पष्ट किया है - विगत में अस्तित्व को पूरा न समझते हुए, अस्तित्व में ही किसी एक भाग को दर्शन का आधार मानते हुए ईश्वरवाद और भौतिकवाद तैयार हुआ. अस्तित्व को छोड़ कर तो कुछ कहा नहीं जा सकता.
अस्तित्व में ही एक भाग को लेकर ईश्वरवाद चला. "ईश्वर" जिसका नाम दिया उसको जीव-जगत का जिम्मेवार मान लिया. जीव-जगत में सृष्टि-स्थिति-लय को माना किन्तु उसको "माया" माना. ईश्वरवाद पूरा अनुग्रहवाद हुआ. इस आधार पर किताब (शास्त्र) को प्रमाण बताया. ईश्वरवाद से भक्ति-विरक्ति मार्ग निकला. लोग ईश्वरवाद की देहरी पर अपना सर झुकाए, अपनाए, अनुष्ठान किये, आजीवन अनुष्ठान किये. बहुत सारे उनमे से ईमानदार भी होंगे, बेईमान भी होंगे. ईमानदार भी जो हुए उनसे कोई ऐसा प्रमाण प्रस्तुत नहीं हुआ, जो परम्परा के रूप में चल पाए. मानव परम्परा के लिए - जैसे परिवार परम्परा है, जैसे मानव में सांस लेने का परम्परा है, जैसे मानव में आँख काम करने का परम्परा है - ऐसा कुछ बात उससे निकला नहीं.
अस्तित्व में एक भाग को ही लेकर भौतिकवाद भी चला. प्रकृति में सृष्टि-स्थिति-लय होने को भौतिकवाद ने भी माना. किन्तु ईश्वरवाद ने जहाँ भौतिक-रासायनिक वस्तु को माया माना, भौतिकवाद ने उसको सच माना. किन्तु उसको "अंतिम सत्य" नहीं माना. यह उनके साथ रखा हुआ एक आधार है. भौतिकवाद पूरा यंत्रवाद हुआ. इस तरह यंत्र को सामने रख के ये प्रमाण बताते हैं. यंत्रवाद ने आकर अपने वर्चस्व का प्रदर्शन करते हुए आदमी को मोटर में घुमा दिया, रेलगाड़ी में घुमा दिया, एयरोप्लेन में घुमा दिया, चंद्रमा का यात्रा करा दिया - इसको "सच" बताया.
मानव में "सच" या "झूठ" होता है, यंत्र में क्या होना है? - ऐसा मैं समझा. यंत्र में क्या सच, क्या झूठ? यंत्र को चलाने वाले, बनाने वाले मानव में सच या झूठ की बात हो सकती है. यंत्र तो मानव का ही बनाया हुआ है. इसमें हमारा कहना है - विज्ञान का ज्ञान भाग गलत है, तकनीकी भाग ठीक है. विज्ञान से मानव को जो ज्ञान होता है - वह गलत है.
अध्यात्मवादी/ईश्वरवादी भी ज्ञान को लेकर प्रयत्न किये, किन्तु वे भी सहअस्तित्व को समझे नहीं. ईश्वरवादियों ने पहले शब्द को ब्रह्म माना, फिर आप्त-वाक्य को प्रमाण माना, उसके बाद शास्त्र को प्रमाण माना. इस प्रकार कई लहर उनमे चल चुकी हैं. विज्ञान अथा से इति तक यंत्र को प्रमाण मानने में टिके हैं.
ज्ञान का धारक-वाहक केवल मानव है. यंत्र नहीं है. किताब नहीं है. इस आधार पर विकल्प को सोचा जाए.
अध्यात्मवाद और भौतिकवाद दोनों का विकल्प बना है तो दोनों में कही हुई बातों को "सुधारा" जाए. शब्दों को सुधारे बिना कार्य-व्यव्हार में सुधार नहीं हो सकता.
- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००५, रायपुर)
उत्तर: विकल्प से मतलब है: - विगत से जो कुछ भी हमको दर्शन मिला, सोच-विचार मिला, आचरण मिला, संविधान मिला, व्यवस्था मिला और जो कुछ भी मिला - उसका यह विकल्प है.
दर्शन, सोच-विचार के विकल्प को लेकर हमने स्पष्ट किया है - विगत में अस्तित्व को पूरा न समझते हुए, अस्तित्व में ही किसी एक भाग को दर्शन का आधार मानते हुए ईश्वरवाद और भौतिकवाद तैयार हुआ. अस्तित्व को छोड़ कर तो कुछ कहा नहीं जा सकता.
अस्तित्व में ही एक भाग को लेकर ईश्वरवाद चला. "ईश्वर" जिसका नाम दिया उसको जीव-जगत का जिम्मेवार मान लिया. जीव-जगत में सृष्टि-स्थिति-लय को माना किन्तु उसको "माया" माना. ईश्वरवाद पूरा अनुग्रहवाद हुआ. इस आधार पर किताब (शास्त्र) को प्रमाण बताया. ईश्वरवाद से भक्ति-विरक्ति मार्ग निकला. लोग ईश्वरवाद की देहरी पर अपना सर झुकाए, अपनाए, अनुष्ठान किये, आजीवन अनुष्ठान किये. बहुत सारे उनमे से ईमानदार भी होंगे, बेईमान भी होंगे. ईमानदार भी जो हुए उनसे कोई ऐसा प्रमाण प्रस्तुत नहीं हुआ, जो परम्परा के रूप में चल पाए. मानव परम्परा के लिए - जैसे परिवार परम्परा है, जैसे मानव में सांस लेने का परम्परा है, जैसे मानव में आँख काम करने का परम्परा है - ऐसा कुछ बात उससे निकला नहीं.
अस्तित्व में एक भाग को ही लेकर भौतिकवाद भी चला. प्रकृति में सृष्टि-स्थिति-लय होने को भौतिकवाद ने भी माना. किन्तु ईश्वरवाद ने जहाँ भौतिक-रासायनिक वस्तु को माया माना, भौतिकवाद ने उसको सच माना. किन्तु उसको "अंतिम सत्य" नहीं माना. यह उनके साथ रखा हुआ एक आधार है. भौतिकवाद पूरा यंत्रवाद हुआ. इस तरह यंत्र को सामने रख के ये प्रमाण बताते हैं. यंत्रवाद ने आकर अपने वर्चस्व का प्रदर्शन करते हुए आदमी को मोटर में घुमा दिया, रेलगाड़ी में घुमा दिया, एयरोप्लेन में घुमा दिया, चंद्रमा का यात्रा करा दिया - इसको "सच" बताया.
मानव में "सच" या "झूठ" होता है, यंत्र में क्या होना है? - ऐसा मैं समझा. यंत्र में क्या सच, क्या झूठ? यंत्र को चलाने वाले, बनाने वाले मानव में सच या झूठ की बात हो सकती है. यंत्र तो मानव का ही बनाया हुआ है. इसमें हमारा कहना है - विज्ञान का ज्ञान भाग गलत है, तकनीकी भाग ठीक है. विज्ञान से मानव को जो ज्ञान होता है - वह गलत है.
अध्यात्मवादी/ईश्वरवादी भी ज्ञान को लेकर प्रयत्न किये, किन्तु वे भी सहअस्तित्व को समझे नहीं. ईश्वरवादियों ने पहले शब्द को ब्रह्म माना, फिर आप्त-वाक्य को प्रमाण माना, उसके बाद शास्त्र को प्रमाण माना. इस प्रकार कई लहर उनमे चल चुकी हैं. विज्ञान अथा से इति तक यंत्र को प्रमाण मानने में टिके हैं.
ज्ञान का धारक-वाहक केवल मानव है. यंत्र नहीं है. किताब नहीं है. इस आधार पर विकल्प को सोचा जाए.
अध्यात्मवाद और भौतिकवाद दोनों का विकल्प बना है तो दोनों में कही हुई बातों को "सुधारा" जाए. शब्दों को सुधारे बिना कार्य-व्यव्हार में सुधार नहीं हो सकता.
- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००५, रायपुर)
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