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Friday, August 2, 2019

आवर्तनशीलता की पहचान

प्रश्न : आवर्तनशीलता को कैसे पहचाने?

उत्तर: मनुष्य प्राकृतिक वैभव (खनिज और वनस्पति) को अपनी आकांक्षाओं (आहार, आवास, अलंकार, दूरश्रवण, दूरदर्शन, दूरगमन) को पूरा करने के लिए कच्चा माल के रूप में प्रयोग करता है.  आवर्तनशीलता है - हम उन्ही वस्तुओं का प्रयोग करें कि जितना हम उपयोग करें प्रकृति उसको उतना पुनः बना पाए.  अभी वनस्पतियों में हमको पता लगता है कि हमारे उपयोग के बाद वह पुनः बनता रहता है.  तो वनस्पतियों को उपयोग करने के अनुपात में पुनः लगाते रहना आवर्तनशीलता है.  जबकि खनिज जो हम उपयोग करते हैं, वह पुनः बन रहा है - यह हमको प्रतीत नहीं होता.  तो जिन खनिजों को धरती अपने गर्भ में न रखते हुए बाहर कर दिया, उसको मानव उपयोग करे तो वह आवर्तनशील है.  धरती के गर्भ से खनिजों को निकालना बंद कर देना चाहिए.  लोहा आदि धातुओं को जिनको निकाल लिया गया है, उनको बारम्बार उपयोग करने का (recycle) कार्यक्रम रहे.  जैसे - घिसी हुई रेल पटरियां जंग खा कर, चोरी हो कर न जाएँ - उनका पुनः उपयोग हो.  अभी जितना लोहा धरती की सतह पर आ चुका है वह मानव की हज़ार वर्ष की आवश्यकता को पूरा कर सकता है. 

हम जंगल से बांस/लकड़ी काट कर लाते हैं, उसका हज़ारों टन मात्रा में कागज़ बनाते हैं.  उस सारे कागज़ को उपयोग के बाद स्याही को धोकर, पुनः pulp बना कर कागज़ बनाने की बात होना चाहिए.  इस recycling को आसानी से कर सकते हैं.  इस तरह बांस/जंगल काटने की आवश्यकता कम होगा. 

जंगल से ईंधन प्राप्त करने को कम करने के लिए सौर ऊर्जा का प्रयोग करना.  घर-घर में सौर ऊर्जा को पहुँचाना.  सौर ऊर्जा से घर में खाना बनाना और रोशनी होना.  सूर्य ऊष्मा सदा-सदा के लिए है - जब तक सूरज ठंडा न हो जाए तब तक.  इसी तरह गोबर गैस का उपयोग कर सकते हैं.  आज गोबर डाले, उससे गैस मिला, कल भी मिलेगा - यह आवर्तनशील है.  वायु तरंग को ऊर्जा प्राप्त करने के लिए उपयोग कर सकते हैं.  आज हवा चला, उससे ऊर्जा मिला, कल भी मिलेगा - यह आवर्तनशील है. 

मानव यदि मानव चेतना में परिवर्तित होता है तो बहुत सी आवश्यकताएं सीमित/संयत हो जाती हैं.  अभी बहुत सी आवश्यकताएं अमानवीयता के आधार पर हैं.

- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (२००५, रायपुर)

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