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Friday, August 2, 2019

व्यव्हार में संवाद का महत्त्व




मानव मानव के साथ व्यव्हार करता है, उसके मूल में वह दूसरे के बारे में कुछ मानता है.  उस के अनुसार या तो वह "स्नेह" करेगा या "विरोध" करेगा.  विगत में तीसरा भाषा भी प्रयोग किया कि "तटस्थ" रहेगा.  मेरे अनुसार विरोध का ही दूसरा नाम है "तटस्थ"!  इस तरह मानव व्यव्हार में या तो स्नेह होगा या नहीं तो विरोध ही होगा.  स्नेह के साथ ही परस्परता में विश्वास होता है.  स्नेह यदि टूटा रहता है तो परस्परता में विश्वास नहीं है.

व्यव्हार में संवाद भावी है.  व्यवहार में हम न्याय पूर्वक जीने के लिए संवाद करें.  समाधान पूर्वक जीने के लिए संवाद करें.  जब कभी भी हम संवाद शुरू करें - समाधान को आधार मान कर करें.  समाधान पूर्वक हम कैसे जियेंगे - इस पर संवाद करें.  न्याय पूर्वक कैसे जीना है? समाधान पूर्वक कैसे जीना है?  सत्य पूर्वक कैसे जीना है?  नियम पूर्वक कैसे जीना है?  नियंत्रण पूर्वक कैसे जीना है?  संतुलन पूर्वक कैसे जीना है?  व्यवहारात्मक जनवाद में हम व्यव्हार करते हुए इन ६ मुद्दों को कैसे प्रमाणित करेंगे - इस पर संवाद करने की सलाह दिया है.  स्कूल-कॉलेजों में इन ६ मुद्दों पर बच्चों से संवाद कराया जा सकता है.  इससे बच्चों में समाधान की मानसिकता तैयार होगी.

- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (२००५, रायपुर)

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