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Friday, August 16, 2019

विकल्प की आवश्यकता

अस्तित्व सहअस्तित्व स्वरूपी है.
सहअस्तित्व सत्ता में संपृक्त प्रकृति है.
ऐसे प्रकृति चार अवस्था व चार पदों में है.
इसमें विकास-क्रम, विकास, जाग्रति-क्रम, जाग्रति - ये शाश्वत प्रक्रियाएं हैं.

सत्ता अपरिणामी है.  जीवन विकास पूर्वक अपरिणामी हुआ है.

मनुष्य आदिकाल से अमरत्व को खोजता रहा है.  शास्त्रों में लिखा है - "अमरा निर्जरा देवास्त्रिदशा विबुधा सुरा:" (अमरकोष, प्रथम काण्ड, १.१.१३)  जो जरा (वृद्ध) नहीं होता है, उसको उन्होंने देवता कहा.

जीवन में जरा-दोष नहीं है.  परिणाम दोष नहीं है, इसलिए जरा-दोष नहीं है.  जीवन मात्रात्मक परिवर्तन से मुक्त है.  जब तक मात्रात्मक परिवर्तन है तब तक जरा-दोष है.  रासायनिक-भौतिक वस्तुओं में मात्रात्मक परिवर्तन है, जरा दोष है, इसलिए रचना-विरचना उनमे होता ही रहता है.  जीवन में कोई रचना-विरचना होता ही नहीं है.  जीवन में होता है - चेतना.  चेतना में गुणात्मक विकास होता है.

चेतना का स्वरूप बताया - जीव चेतना, मानव चेतना, देव चेतना, और दिव्य चेतना.

मानव जीवचेतना पूर्वक अव्यवस्था में फंसता है, क्लेश को मोलता है, गलती-अपराध को करता है. 

मानव की स्थिति जीव चेतना की है - इसकी गवाही में सभी राजतंत्र यह स्वीकारे हैं कि मानव गलती-अपराध कर सकता है. 

मानव की स्थिति जीव चेतना की है - इसकी गवाही में सभी (ईश्वरवादी) धर्मगद्दी मानव को पापी, अज्ञानी और स्वार्थी कहा है.  इसी ईश्वरवाद में कहा है - "मुंडे मुंडे मतिभिन्ना: कुंडे कुंडे नवं पयः" (वायु पुराण).  (मतलब हर आदमी का अलग अलग मत होगा ही)  इसी क्रम में कहा - "सुनो सबकी, करो मन की".  इसी क्रम में कहा - "खाली हाथ आये, खाली हाथ जायेंगे".  यह सब झूठ का पुलिंदा है, भ्रम है.  भ्रम को आप झूठ मानोगे या नहीं?

"खाली हाथ आये और खाली हाथ जायेंगे" - ये शरीर की बात कर रहे हैं.  जीवन ज्ञान नहीं है, इसका प्रमाण दे दिया या नहीं?  जीवन ज्ञान ईश्वरवादी परम्परा में नहीं था - इस बात का यह प्रमाण है.  शिष्ट परिवारों में, वेद मूर्ति परिवारों में यह नारा चला है - "खाली हाथ आये और खाली हाथ जायेंगे".  इससे पता चलता है कि उनको जीवन ज्ञान नहीं था. 

ईश्वरवाद रहस्यमय होने के कारण प्रमाण तक पहुँच नहीं पाया.  अस्तित्व के कुछ भाग को विज्ञानियों ने सच माना, कुछ भाग को ईश्वरवादियों ने सच माना.  दोनों अधूरे होने के कारण प्रमाणित नहीं हो पाए, संकटग्रस्त हुए.  इसीलिये "विकल्प" की ज़रुरत आ गयी.

- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००५, अमरकंटक)

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