मैं किसी से भी मिलता हूँ तो उससे मुझे कुछ न कुछ प्रेरणा तो मिलता ही है. किसी भी व्यक्ति से मिलना वृथा तो गया ही नहीं. जिसको मैं डांटता भी हूँ उससे भी कुछ न कुछ प्रेरणा मुझे मिलता ही है. जिससे प्यार करता हूँ उससे भी मुझे प्रेरणा मिलती है. इससे ज्यादा क्या बयान करूँ? लोगों में जो अच्छी बात है छान कर मैं उसको स्वीकारता हूँ. अभी का लोगों का अभ्यास है - सामने वाले में एक खराब बात मिली तो उसके सब कुछ पर डामर पोत देते हैं! सामने आदमी का १०० में से ९९ ठीक है, एक छेद मिल गया तो उसके पूरे पर डामर पोत दिया! उसको पूरा नकार दिया. ऐसा करके ही तो आदमी जात दरिद्र हुआ है. आदमी ५१% सही है, उससे आगे क्यों नहीं बढ़ा अभी तक? एक दूसरे के काम में छेद देखने से.
- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००५, अमरकंटक)
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