ईश्वरवादी परंपरा में कहा गया, विज्ञान में भी कहा गया - "कर के समझो". ईश्वरवादी परम्परा में कहा गया - "आचरण प्रथमो धर्मः विचारम तदनंतरम" मतलब - आचरण के बाद विचार करना, उससे पहले नहीं! इसमें व्यतिरेक यह दिखा - विचार के बिना कोई आचरण कर ही नहीं सकता. मैंने यह कहा तो मुझे बताया गया कि तुम छोटा मुंह बड़ी बात करते हो.
अब हमने प्रस्तुत किया है - "समझ के करो!" समझ के सोच विचार करना, काम करना, फल परिणाम पाना यदि हम शुरू करते हैं तो धरती में यदि कुछ ताकत बचा होगा तो वह सुधार लेगा. इस शुभेच्छा से यह प्रस्ताव रखा है.
सभी वास्तविकताओं का प्रयोजन का पता लगा लेना = जानना. जानने के बाद मानना.
जानने-मानने के बाद पहचानने-निर्वाह करने की बात आती है.
जाने हुए को मान लेने और माने हुए को जान लेने - इन दोनों स्थितियों में समझ के ही करना बनता है.
समझ के करने से प्रयोजन के अर्थ में प्रयोग करना बन जाता है. व्यर्थता के प्रयोग करना बंद हो जाता है.
प्रश्न: "जाना हुआ" और "माना हुआ" में क्या अंतर है?
उत्तर: भ्रमित संसार में जाने हुए और माने हुए में व्यतिरेक रहता है. जागृत संसार में जाने हुए और माने हुए में कोई व्यतिरेक नहीं है.
- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००५, रायपुर)
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