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Wednesday, August 14, 2019

निरपेक्ष ऊर्जा

प्रश्न:  आपने लिखा है - "सम्पूर्ण पदार्थ अपनी परमाण्विक स्थिति में सचेष्ट हैं, इससे स्पष्ट होता है कि इन्हें ऊर्जा प्राप्त है.  यह निरपेक्ष ऊर्जा है"

इकाइयों की क्रियाशीलता के मूल में ऊर्जा इकाई का ही गुण क्यों नहीं हो सकता?  इसमें "सत्ता" या "निरपेक्ष ऊर्जा" को लाने की क्या आवश्यकता थी?

उत्तर:  इकाई स्वयं से क्रियाशील हो और दूसरों को क्रियाशील करवा सके - ऐसा कुछ गवाहित नहीं है.  यदि आप कहते हो कि ऊर्जा इकाई का ही गुण है तो आपको यह भी बताना होगा कि एक इकाई का ऊर्जा दूसरे तक कैसे पहुँचता है?  अभी इकाइयों की सापेक्षता पूर्वक हम जो ऊर्जा प्राप्त करते हैं - उसमे ईंधन की ऊर्जा से कम ऊर्जा को ही हम प्राप्त करते हैं.  जैसे - स्टीम इंजन में जितना कोयला हम जलाते हैं उस कोयले की ऊष्मा-ऊर्जा से कम ऊर्जा ही हमे वाष्प से मिलती है.  इसका मतलब यह हुआ कि भौतिक वस्तुएं अपने से अधिक ऊर्जान्वित हो कर दूसरे को ऊर्जा दे नहीं पाते हैं.

"ऊर्जा इकाई का ही गुण है" - यह अवधारणा दे कर आप क्या कल्याण करना चाहते हैं?  किस उद्देश्य से?  यदि बिना उद्देश्य के बोलने की इजाज़त हो तो कुछ भी बोलना बनता है.  क्या बिना उद्देश्य के कुछ बात हो सकती है?

सत्ता को निरपेक्ष ऊर्जा इसलिए कहा क्योंकि यह ऊर्जा का अक्षय स्त्रोत है.  सब वस्तुओं में वह ऊर्जा आ करके जितना वो वस्तु है उससे ज्यादा वह ताकत है.  कोई परमाणु हज़ार वर्ष क्रियाशील रह कर भी रुकता नहीं है, उसकी क्रियाशीलता यथावत रहती है - क्योंकि निरपेक्ष ऊर्जा का अक्षय स्त्रोत है.   ऊर्जा सम्पन्नता के फलन में क्रियाशीलता ही "मूल चेष्टा" है.  भौतिक क्रिया, रासायनिक क्रिया, और जीवन क्रिया के मूल में परमाणु ही है.  परमाणु में ही मूल चेष्टा की पहचान है.  क्रियाशीलता ही श्रम, गति, परिणाम के रूप में व्याख्यायित है.  श्रम का विश्राम, गति का गंतव्य और परिणाम का अमरत्व ही विकास व जाग्रति है.  अस्तित्व में जो कुछ भी क्रिया है उसका अर्थ इतना ही है.  उसको अध्ययन करना है, जीना है. 

प्रश्न:  आपके निरपेक्ष ऊर्जा को ऊर्जा का अक्षय स्त्रोत बताने का क्या उद्देश्य है?

उत्तर: मैंने संसार को व्यवस्था के स्वरूप में देखा.  व्यवस्था के स्वरूप में संसार को प्रस्तुत करना ज़रूरी माना.  भौतिकवादी संसार को अव्यवस्था बता कर शुरू किया.  ईश्वरवाद संसार को माया बता कर शुरू किया.  इन दोनों से व्यवस्था बनने वाला नहीं है.  व्यवस्था के स्वरूप में अस्तित्व को प्रस्तुत करने के तकलीफ हो तो बताओ!

- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००५, रायपुर)

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