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Wednesday, March 30, 2016

विश्वास

"विश्वास केवल सत्य में, से, के लिए होता है.  अस्तित्व ही परम सत्य है, जीवन ज्ञान ही परम ज्ञान है, और मानवीयता पूर्ण आचरण ही परम आचरण है.  विश्वास सहज गति स्वरूप में (या कार्य-व्यव्हार स्वरूप में) सम्बन्धों की पहचान, मूल्यों का निर्वाह, मूल्याँकन, उभय तृप्ति व संतुलन ही है.  सम्पूर्ण सम्बन्धों में विश्वास ही वर्तमान में सुख पाने की विधि है.  निरन्तर समझदारी सहित आवश्यकताओं, उपकारों, दायित्वों में भागीदारी निर्वाह करने के क्रम में विश्वास प्रमाणित होना पाया जाता है, तथा इसी से मानव सुखी होता है.  यह नित्य उत्सव के रूप में स्पष्ट है.  ऐसे बहने वाले विश्वास का एक स्वाभाविक वातावरण अथवा प्रभाव बनना सहज है.  फलतः तन्मयता प्रमाणित होना पाया जाता है." - श्री ए नागराज


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