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Thursday, March 24, 2016

शिक्षा में प्रावधान

"हर शिशु जन्म से ही न्याय का याचक, सही कार्य-व्यव्हार करने का इच्छुक और सत्यवक्ता होता है.  इन जिज्ञासाओं को फलीभूत करने के लिए: -

  • न्याय प्रदायी क्षमता और योग्यता को स्थापित करने से न्याय सहज अपेक्षा तृप्त होती है.
  • व्यव्हार में सामाजिक, व्यवसाय में स्वावलम्बन की क्षमता योग्यता पात्रता को स्थापित करने पर सही कार्य-व्यवहार करने की इच्छा तृप्त होती है.
  • सहअस्तित्व रूपी सत्य बोध से सत्य वक्ता होने की तृप्ति होती है.
अतः शिशु काल से परिवार में तथा शिक्षा में अस्तित्व दर्शन, मानवीयता पूर्ण आचरण, जीवन ज्ञान प्रावधानित रहने से हर मानव का जीवन सफल व प्रमाणित होता है."  - श्री ए नागराज

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