"मनुष्येत्तर प्रकृति में नैसर्गिक रूप में नियंत्रण निर्वाह दिखाई पड़ता है. किन्तु मनुष्य के आत्मेच्छा पूर्वक नियंत्रित होने की व्यवस्था है. नियंत्रण, अनुशासन, स्वानुशासन प्रत्येक मानव का वर होने के कारण मनुष्य आत्मेच्छा पूर्वक स्वानुशासित होने के लिए बाध्य है. अनुशासन के अनन्तर ही स्वानुशासन का अधिकार होता है. स्वानुशासन पद ही सर्वोच्च विकास है." - श्री ए नागराज
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