"ज्ञानावस्था में वैभवित मानव में मूल्य सहित रसास्वादन की अपेक्षा जीवन में है, क्योंकि मूल्याँकन पूर्वक ही तृप्ति व उभय तृप्ति है. मूल्य एवं मूल्याँकन के अभाव में इंद्रियों से रस लेने का प्रयास होता है, जिसकी निरंतरता की सम्भावना नहीं है." - श्री ए नागराज
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