"ब्रह्मानुभूति ही अभिव्यक्ति या प्रकाशन के अर्थ में प्रेम है. व्यापक सत्ता में अनुभूति योग्य क्षमता ही परम शुभ है. शुभ वश ही प्रकृति विकास की ओर प्रसवशील है. ऐसी प्रसवक्रम स्वयं नियति शुभाशय मूलतः नियंत्रण है. उपासना शुभाकांक्षा से परम शुभानुभूति योग्य क्षमता योग्यता पात्रता पर्यन्त है. इसका अवसर ज्ञानावस्था के मनुष्य में, से, के लिए सन्निहित, उदित है." - श्री ए नागराज
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