"मनुष्य अपनी शक्तियों को अपव्यय करते समय दीनता, हीनता, क्रूरता के रूप में प्रकाशित होते हैं, जो अमानवीयता का प्रत्यक्ष रूप है. मनुष्य की शक्तियों का सदुपयोग ही मानवीय स्वभाव अर्थात धीरता, वीरता, उदारता के रूप में अभिव्यक्त होता है, जो कि सामाजिक है. सदुपयोग स्वनियंत्रण पूर्वक ही सिद्ध है. इस प्रकार सामाजिकता के लिए स्वनियंत्रण अर्थात सदुपयोग अपरिहार्य सिद्ध है." - श्री ए नागराज
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