"अधिक साधन और अधिक स्थान को संग्रह करने के मूल में भय की पीड़ा एवं अपव्यय के आग्रह तथा भोग का रहना अनिवार्य रूप में रहना पाया जाता है. अपव्यय एवं भोग से रहित जीवन में अधिक स्थान और अधिक साधन स्वयं में पीड़ादायक सिद्ध है. साधनों के सम्पत्तिकरण की आवश्यकता तभी है जब मानव उत्पादन से अधिक उपभोग करने के लिए तत्पर हैं. उत्पादन से अधिक उपभोग अमानवीयता में ही संभव है." - श्री ए नागराज
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