"विकास व उन्नति के प्रति प्राप्त सहायता जिससे भी मिली हो, उसकी स्वीकृति ही कृतज्ञता है. उपकारान्वित एवं सहयातान्वित होना स्वयं की गरिमा न होते हुए भी गरिमा संपन्न होने की संभावना होती है, यदि कृतज्ञता हो तो. गरिमा सम्पन्नता का तात्पर्य उपकार व सहायता करने की क्षमता से है. प्रत्येक व्यक्ति गरिमा संपन्न होना चाहता है. कृतज्ञता का प्रयोजन गरिमा संपन्न होने के अर्थ में ही है, और गरिमा संपन्न होना ही सामाजिकता की पुष्टि है. इस प्रकार कृतज्ञतावादी, कारी चरित्र ही मानवीय चरित्र है और मानवीय चरित्र ही राष्ट्रीय चरित्र है. अतः कृतज्ञता राष्ट्रीय चरित्र का आधार हुआ." - श्री ए नागराज
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