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Monday, February 22, 2016

समाज

"संबंधों का ताना-बाना ही समाज है.  सम्पूर्ण सम्बन्ध संस्कृति, सभ्यता, विधि और व्यवस्था वादी हैं.  समाज के यही चार आयाम हैं.  इसकी सार्वभौमता ही इनका वैभव है.  समाज की पूर्णता साम्प्रदायिक चरित्र और सुविधा व भोगवादी वस्तुओं के आधार पर सिद्ध नहीं हुआ.  वस्तुओं के साथ समाज मूल्य नहीं वर्तता है.  यह केवल मानव मूल्यों व समाज मूल्यों के वैभव में ही है.  समाज में न्याय के लिए मूल्य ही आधार है.  सामाजिक मूल्यों के साथ विश्वास और निष्ठा वर्तमान है.  प्रामाणिकता स्वयं में विश्वास और निष्ठा के रूप में ही सम्प्रेषित होती है.  मानव की प्रामाणिकता ही समाज व्यवस्था का आधार है." - श्री ए नागराज




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