"कल्पनाशीलता समझ नहीं है, किन्तु अस्तित्व में वस्तु को पहचानने के लिए आधार है. कल्पनाशीलता का प्रयोग करते हुए हमें वस्तु को पहचानना है.
समझने के लिए जब तीव्र जिज्ञासा बन जाती है तभी अध्ययन प्रारम्भ होता है. जीवन में शब्द द्वारा कल्पनाशीलता से जो स्वरूप बनता है, उसके मूल में जो वस्तु है उसे जब जीवन स्वीकार लेता है तब साक्षात्कार हुआ. जैसे - न्याय को समझ लेना अर्थात न्याय को स्वीकार लेना। इसका आशय है, हमारे आशा, विचार, इच्छा में न्याय स्थापित हो जाना। ऐसा हो गया तो न्याय साक्षात्कार हुआ." - श्री ए नागराज
समझने के लिए जब तीव्र जिज्ञासा बन जाती है तभी अध्ययन प्रारम्भ होता है. जीवन में शब्द द्वारा कल्पनाशीलता से जो स्वरूप बनता है, उसके मूल में जो वस्तु है उसे जब जीवन स्वीकार लेता है तब साक्षात्कार हुआ. जैसे - न्याय को समझ लेना अर्थात न्याय को स्वीकार लेना। इसका आशय है, हमारे आशा, विचार, इच्छा में न्याय स्थापित हो जाना। ऐसा हो गया तो न्याय साक्षात्कार हुआ." - श्री ए नागराज
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