"अस्तित्व में परस्परता में सम्बन्ध हैं ही. अस्तित्व में हर वस्तु प्रयोजन सहित ही है. सम्बन्ध को उनके प्रयोजन को पहचान कर निर्वाह करते हैं तो उनमे निहित मूल्यों का दर्शन होता है - क्योंकि मूल्य विहीन सम्बन्ध नहीं हैं. और मूल्य शाश्वतीयता के अर्थ में ही हैं, अर्थात सम्बन्ध भी शाश्वत ही हैं. मानव समबन्ध में विचार व्यवहार का प्रत्यक्ष स्वरूप मूल्य ही है. मूल्यों सहित व्यवहार ही तृप्तिदायक है, यही न्याय है.
मूल्यों का स्वरूप क्या है? मूल्यों को स्वयं में कैसे जाँचा जाये? अन्य के लिए हमारे मन में सदैव (निर्बाध) अभ्युदयकारी, पुष्टिकारी, संरक्षणकारी भाव और विचारों का होना और तदनुरूप व्यवहार होना ही मूल्यों की समझ का प्रमाण है. न्याय के साक्षात्कार का प्रमाण है. यदि हम इन भावों सहित जीते हैं, अभिव्यक्त होते हैं तो न्याय समझ में आया. अन्यथा केवल पठन हुआ." - श्री ए नागराज
मूल्यों का स्वरूप क्या है? मूल्यों को स्वयं में कैसे जाँचा जाये? अन्य के लिए हमारे मन में सदैव (निर्बाध) अभ्युदयकारी, पुष्टिकारी, संरक्षणकारी भाव और विचारों का होना और तदनुरूप व्यवहार होना ही मूल्यों की समझ का प्रमाण है. न्याय के साक्षात्कार का प्रमाण है. यदि हम इन भावों सहित जीते हैं, अभिव्यक्त होते हैं तो न्याय समझ में आया. अन्यथा केवल पठन हुआ." - श्री ए नागराज
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