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Friday, February 12, 2016

अध्ययन विधि से अनुभव

"भ्रमित अवस्था में भी बुद्धि चित्त में होने वाले चित्रणों का दृष्टा बना रहता है.  मध्यस्थ दर्शन के अस्तित्व सहज प्रस्ताव का चित्रण जब चित्त में बनता है तो बुद्धि उससे 'सहमत' होती है.  यही कारण है इस प्रस्ताव को सुनने से रोमांचकता होती है.  रोमांचकता का मतलब यह नहीं है कि कुछ बोध हो गया!  इस रोमांचकता में तृप्ति की निरंतरता नहीं है.

अध्ययन पूर्वक तुलन में न्याय, धर्म, सत्य को प्रधानता दी जाए.  न्याय, धर्म और सत्य का आशा, विचार और इच्छा में स्थिर होना ही 'मनन' है.  इस आधार पर हम स्वयं की जाँच शुरू कर देते हैं कि न्याय सोच रहे हैं या अन्याय।  जाँच होने पर हम न्याय-धर्म-सत्य की प्राथमिकता को स्वयं में स्वीकार लेते हैं, और न्याय-धर्म-सत्य क्या है? - इस शोध में लगते हैं.  इस शोध के फलस्वरूप हम इस निम्न निष्कर्षों पर पहुँचते हैं: -

१. सहअस्तित्व ही परम सत्य है
२. सर्वतोमुखी समाधान ही धर्म है
३. मूल्यों का निर्वाह ही न्याय है

इन निष्कर्षों के आने पर तत्काल साक्षात्कार हो कर बुद्धि में बोध होता है.  बुद्धि में जब यह स्वीकार हो जाता है तो आत्म-बोध हो कर अनुभव हो जाता है. "  - श्री ए नागराज के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००६, अमरकंटक)

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