"मानव चेतना संपन्न होने के लिए मध्यस्थ दर्शन प्रस्ताव अपने अधिकार में न आने का बड़ा कारण है - मनुष्य का जीव चेतना में अपने जीने के कुछ पक्षों को सही माने रहना। जबकि मानव चेतना और जीव चेतना के किसी भी पक्ष में समानता नहीं है.
जब तक अध्ययन शुरू नहीं होता, तब तक हमारी पूर्व स्मृतियाँ बाधाएं डालता ही है. मूलतः बाधा डालने वाली बात है - शरीर को जीवन मानना।
पठन (श्रवण) पूर्वक सूचना से मानव चेतना की श्रेष्ठता के प्रति हमारी कल्पना में प्राथमिकता (मनन पूर्वक) बन जाती है. वहाँ से अध्ययन शुरू होता है. उसके बाद साक्षात्कार होता है.
प्राथमिकता का अर्थ है - मनन विधि से न्याय-धर्म-सत्य रूपी वांछित वस्तु में चित्त-वृत्ति संयत होना।" - श्री ए नागराज
जब तक अध्ययन शुरू नहीं होता, तब तक हमारी पूर्व स्मृतियाँ बाधाएं डालता ही है. मूलतः बाधा डालने वाली बात है - शरीर को जीवन मानना।
पठन (श्रवण) पूर्वक सूचना से मानव चेतना की श्रेष्ठता के प्रति हमारी कल्पना में प्राथमिकता (मनन पूर्वक) बन जाती है. वहाँ से अध्ययन शुरू होता है. उसके बाद साक्षात्कार होता है.
प्राथमिकता का अर्थ है - मनन विधि से न्याय-धर्म-सत्य रूपी वांछित वस्तु में चित्त-वृत्ति संयत होना।" - श्री ए नागराज
1 comment:
🙏👌
Post a Comment