जैसे हम घर का उपयोग करते हैं, वैसे अपने शरीर का उपयोग भी करते हैं। जीते हैं, जीवन में ही। शरीर को छोड़ कर भी जीते हैं, शरीर के साथ भी जीते हैं। शरीर के साथ जीते हुए जागृति-विधि से ही जीना है। जागृति सहअस्तित्व विधि से ही होता है।
- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (अप्रैल २०१०, अमरकंटक)
- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (अप्रैल २०१०, अमरकंटक)
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