प्रश्न: चुम्बकीयता क्या है?
उत्तर: रासायनिक-भौतिक संसार तक ही चुम्बकीयता की बात है। हर जड़-इकाई में आकर्षण और विकर्षण के सम्मिलित-स्वरूप को चुम्बकीयता कहा है। आकर्षण-विकर्षण के आधार पर ही संगठन-विघटन होता है। भौतिक-रासायनिक संसार में व्यवस्था के अर्थ में ही आकर्षण और विकर्षण है।
भ्रमित चैतन्य प्रकृति में वही चुम्बकीयता भय और प्रलोभन के स्वरूप में कार्य कर रहा है।
व्यापक (मूल ऊर्जा) में भीगे रहने के आधार पर रासायनिक-भौतिक वस्तु द्वारा चुम्बकीयता की अभिव्यक्ति है। मूल ऊर्जा सम्पन्नता वश जड़-प्रकृति में जो चेष्टा होती है, उसी से श्रम, गति, परिणाम होता है। श्रम, गति, परिणाम होने से पुनः कार्य-ऊर्जा प्रगट होती है। कार्य-ऊर्जा का आंकलन और गणना प्रचलित-विज्ञान ने भी किया है। सम्पूर्ण प्रकृति का प्रगटन श्रम, गति, परिणाम के आधार पर है। परिणाम का अमरत्व, श्रम का विश्राम, और गति का गंतव्य ही विकास और जागृति का आधार है।
- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (अप्रैल २०१०, अमरकंटक)
उत्तर: रासायनिक-भौतिक संसार तक ही चुम्बकीयता की बात है। हर जड़-इकाई में आकर्षण और विकर्षण के सम्मिलित-स्वरूप को चुम्बकीयता कहा है। आकर्षण-विकर्षण के आधार पर ही संगठन-विघटन होता है। भौतिक-रासायनिक संसार में व्यवस्था के अर्थ में ही आकर्षण और विकर्षण है।
भ्रमित चैतन्य प्रकृति में वही चुम्बकीयता भय और प्रलोभन के स्वरूप में कार्य कर रहा है।
व्यापक (मूल ऊर्जा) में भीगे रहने के आधार पर रासायनिक-भौतिक वस्तु द्वारा चुम्बकीयता की अभिव्यक्ति है। मूल ऊर्जा सम्पन्नता वश जड़-प्रकृति में जो चेष्टा होती है, उसी से श्रम, गति, परिणाम होता है। श्रम, गति, परिणाम होने से पुनः कार्य-ऊर्जा प्रगट होती है। कार्य-ऊर्जा का आंकलन और गणना प्रचलित-विज्ञान ने भी किया है। सम्पूर्ण प्रकृति का प्रगटन श्रम, गति, परिणाम के आधार पर है। परिणाम का अमरत्व, श्रम का विश्राम, और गति का गंतव्य ही विकास और जागृति का आधार है।
- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (अप्रैल २०१०, अमरकंटक)
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