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Thursday, June 3, 2010

सह-अस्तित्व का प्रतिरूप

व्यवस्था का साक्षात्कार नहीं होगा तो व्यवस्था में हम जियेंगे कैसे? व्यवस्था के अर्थ में यदि अस्तित्व को समझते हैं तो व्यवस्था के अर्थ में जीना बनता है। व्यवस्था के अर्थ में ही जड़ और चैतन्य है। वह व्यवस्था सह-अस्तित्व ही है। अनुभव होने के बाद मानव सह-अस्तित्व के प्रतिरूप स्वरूप में कार्य करता है। सह-अस्तित्व के प्रतिरूप का मतलब - चारों अवस्थाओं के साथ संतुलित स्वरूप में जीना। मनुष्येत्तर प्रकृति पहले से ही संतुलित है। मानव का संतुलित होना अनुभव मूलक विधि से ही संभव है।

- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (अप्रैल २०१०, अमरकंटक)

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