हर वस्तु अनंत कोण संपन्न है। हर वस्तु हर कोण से दीखता है। हर वस्तु किसी न किसी कोण से दूसरे वस्तु से जुडा ही रहता है। इस तरह हर वस्तु दूसरे पर प्रतिबिंबित है। हर वस्तु नियति क्रम में अपनी अवस्थिति के अनुसार दूसरे वस्तु के साथ अपने सम्बन्ध को पहचानता है और निर्वाह करता है।
मनुष्य जो सम्बन्ध समझ में आ गया - उसको वह पहचानता है, और निर्वाह करता है। सम्बन्ध जो समझ में नहीं आया, उसको न वह पहचानता है - न निर्वाह करता है। मनुष्य को चारों अवस्थाओं के साथ अपने सम्बन्ध को पहचानने की ज़रूरत है, तभी वह भ्रम और अपराध से मुक्त हो पाता है। मनुष्य जब भ्रम और अपराध से मुक्त होता है तभी धरती अपने आप को स्वस्थ कर सकती है। अपराध करते रहेंगे तो धरती पर आदमी जात तो नहीं रहेगा।
- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (अप्रैल २००८, अमरकंटक)
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