सह-अस्तित्व वाद के इस प्रस्ताव पर तर्क से छेद करने का कोई जगह ही नहीं है। यह पूरा प्रस्ताव तर्क सम्मत है।
दूसरे, इस बात को नकारने की कोई जगह नहीं है।
बाकी बचा - नफरत! नफरत करने का अधिकार हर व्यक्ति के पास रखा है। आप इससे नफरत कर सकते हैं।
मैं अस्तित्व क्यों और कैसा है - इसके लिए अपना अनुभव आपके सामने प्रस्ताव रूप में रखता हूँ।
"हम आपकी बात नहीं मानते!" - एक उत्तर आता है।
आपकी बात शिरोधार्य है, पर होना क्या चाहिए? - मैं कहता हूँ।
"वह हम नहीं जानते!" - बदले में जवाब आता है।
इस तरह कुछ लोग अपना रास्ता इस प्रस्ताव के लिए बंद करके बैठे हैं।
होना क्या चाहिए - इसको बता कर इस प्रस्ताव को नकारिये।
देखिये - इस प्रस्ताव का पूरा implementation आसान तो नहीं है, पर ज़रूरी है। आसान नहीं है, क्योंकि हम इतनी लफ़डेबाजी में फंस गए हैं। जो जितना फंसा हुआ है, उसको उतना ही मुश्किल लगता है।
- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (अप्रैल २००८, अमरकंटक)
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