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Monday, December 15, 2008

अनुभव एक व्यक्ति को हो सकता है, तो दूसरे को भी हो सकता है.

अनुभव एक व्यक्ति को हो सकता है, तो दूसरे को भी हो सकता है। एक व्यक्ति जो समझ सकता है, कर सकता है - वैसे ही हर व्यक्ति समझ सकता है, कर सकता है। अनुभव संपन्न व्यक्ति के निरीक्षण परीक्षण से एक से दूसरे व्यक्ति के लिए प्रेरणा बनती है। फ़िर उसके लिए दूसरे का प्रयत्नशील होना स्वाभाविक हो जाता है। उसी ढंग से सभी इस बात से जुड़ रहे हैं।

मेरे जीने के तौर-तरीके से जो मैं आप में अनुभव होने का आश्वासन दिलाता हूँ - उसमें तारतम्यता बनता जाता है। उससे आपका विश्वास दृढ़ होता जाता है।

प्रश्न: मुझसे पहले, मुझसे ज्यादा पढ़े- लिखे, अनेक वर्षों से अध्ययन में संलग्न लोग जब अपने अनुभव होने की स्पष्ट घोषणा नहीं कर पाते हैं - तो मेरा विश्वास डगमगा जाता है, कि मैं इसको कभी पूरा समझ पाऊंगा।

उत्तर: इसको escapism में न लगाया जाए। जिम्मेदारी के साथ हम समझते हैं, करते हैं। "हम समझेंगे, और अपनी समझ को जियेंगे।" - यहाँ तक आप अपनी जिम्मेवारी को रखिये। दूसरा समझा या नहीं समझा - उसको अभी मत सोचिये। आप पूरा होने के बाद संसार और ही कुछ दिखने लग जाता है। जैसे मुझ को दिख रहा है कि हर व्यक्ति शुभ चाह रहा है। शुभ के लिए ही सभी प्रयत्न कर रहे हैं। एक दिन पहुँच ही जायेंगे। मेरे पास किसी का विरोध करने का कोई रास्ता ही नहीं है। आप अनुभव करने के बाद वही करोगे, दूसरा कोई रास्ता नहीं है।

सबको आत्मसात किए बिना हम समाधानित नहीं हो सकते। सबको आत्मसात कैसे करोगे? एक दिन सभी सच्चाई को समझेंगे। यह पहला कदम है। यह फ़िर मिटेगा नहीं। अब उसके बाद हम अपना प्रस्ताव देना शुरू किए। प्रस्ताव में लोगों को सम्भावना दिखने लगी। आपकी इस प्रस्ताव में स्वीकृति मुझ को दृढ़ता प्रदान करता है। उसी प्रकार आप जब दूसरों को प्रबोधित करते हैं तब उससे आप की सुदृढ़ता बनती है। इसमें कोई शंका की बात नही है। केवल ध्यान देने की आवश्यकता है। शरीर को हटा कर जीवन पर ध्यान देने की आवश्यकता है।

इस प्रस्ताव की सूचना अब तक एक लाख लोगों तक तो पहुँच चुकी है। उसमें से कम से कम ५० लोग इसके अध्ययन में लग गए हैं। यह ०.०००५ % हुआ। यह भी सन् २००० के बाद शुरू हुआ। उसके पहले के मेरे प्रयत्न में १ या २ व्यक्ति इसके अध्ययन में लगे। जैसे सत्य जी लगे - पर उनका देहांत हो गया। फ़िर रण सिंह लगे, तीसरे साधन भट्टाचार्य लगे। २० वर्ष में ये तीन व्यक्ति टिके। इस दशक में सर्वाधिक प्रगति हुई। अगले दशक में इससे ज्यादा होगा - ऐसा अनुमान होता ही है। इस ढंग से आशा बनती है। इसके लिए program देने के लिए अब मेरे साथ ५० और लोग हो गए। उसमें से सटीक program को रखने वाले १-२ होंगे ही! कुछ कमी होगा तो उसको पूरा करने के लिए मैं बैठा ही हूँ।

प्रश्न: क्या इस बात की कोई सम्भावना है कि इस अनुसंधान का लोकव्यापीकरण न हो? क्या इस बात की सम्भावना है कि आप के रहते कोई भी अपने अनुभव-संपन्न होने की स्पष्ट घोषणा नहीं कर पाये?

उत्तर: इस दशक में आने के बाद अब वह सम्भावना नहीं है। लोग इसको समझ जायेंगे और यह जिन्दा रहेगा - यह आश्वस्ति इस दशक के बाद से हुई। मानव को धरती पर रहना हो तो मध्यस्थ-दर्शन के अनुसंधान के सफल होने की घटना सही है। सन् २००० से पहले मैं कहता था - "मानव को धरती पर रहना होगा, तो इसको समझेगा नहीं तो नहीं समझेगा।" अब यह लोकव्यापीकरण हो के ही रहेगा। इस बात का प्रवाह बनेगा - यह तो निश्चित हो गया है। जो लोग इसके अध्ययन में लगे हैं, और प्रोग्राम में लगे हैं - उनके संकेतों से मुझको ऐसा ही लगता है।

- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (अप्रैल २००८, अमरकंटक)

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