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Saturday, December 6, 2008

सच्चाइयों की स्वीकृति

बोध में सभी सच्चाइयां ही स्वीकार होती हैं। सच्चाइयों का स्वीकृति बुद्धि में ही होता है। verbally नहीं होता। ध्वनी-मत से स्वीकृति नहीं है। वस्तु-मत से है। वस्तु - सह-अस्तित्व स्वरूप में सभी सच्चाइयाँ रखा है। सच्चाइयों का तीन खाका है - सह-अस्तित्व दर्शन ज्ञान, जीवन ज्ञान, और मानवीयता पूर्ण आचरण ज्ञान। सह-अस्तित्व में ही जीवन है, और मानवीयता पूर्ण आचरण है। सह-अस्तित्व में ही पदार्थ-अवस्था, प्राण-अवस्था, जीव-अवस्था, और ज्ञान-अवस्था (मानव) है। सह-अस्तित्व का मूल रूप व्यापक में संपृक्त प्रकृति है। यह पाँच सूत्रों के रूप में है - सह-अस्तित्व, सह-अस्तित्व में विकास-क्रम, सह-अस्तित्व में विकास, सह-अस्तित्व में जागृति-क्रम, सह-अस्तित्व में जागृति। यही पाँच सूत्र अनुभव-मूलक विधि से प्रमाणित होते हैं।

समझ जीने में ही प्रमाणित होती है। समझ गए हैं और "जीने" के लिए प्रयत्न कर रहे हैं - यह एक खाका है। दूसरा खाका है - प्रयत्न पूरा हो गया है, अब प्रमाणित हैं। ये दो ही खाका है। इसके अलावा और कोई तरीका ही नहीं है। यह हर व्यक्ति के साथ प्राण-संकट है, या सौभाग्य है! शरीर के साथ वरीयता करते हैं - तो प्राण-संकट है। शरीर के साथ वरीयता छोड़ते हैं - तो सौभाग्य लगता है।

- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (अप्रैल २००८, अमरकंटक)

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