साक्षात्कार पाँच सूत्र (सह-अस्तित्व, सह-अस्तित्व में विकास-क्रम, सह-अस्तित्व में विकास, सह-अस्तित्व में जागृति-क्रम, और सह-अस्तित्व में जागृति) का होता है - जो अनुभव में जा कर सूत्रित होता है। सभी दिशायें/कोण एक बिन्दु में समाते हैं। वैसे ही सारी मध्यस्थ-दर्शन की व्याख्या अनुभव-बिन्दु में समाती है। बिन्दु का कोई लम्बाई-चौडाई नहीं है। यह हुआ synthesis या synchronization। फैलावट से बिन्दु तक अध्ययन है। अनुभव बिन्दु है। फैलना परम्परा है। अनुभव एक बिन्दु है - उसका विस्तार अनंत दूर तक फैलता है। कहीं रुकता नहीं है वह!
धर्म अनुभव में ही समझ में आता है। धर्म अनुभव में आ गया तो सब समझ में आ गया। वह point को पकड़ने की ज़रूरत है। बाकी सब तर्क-संगति से समझ में आ ही जाता है। रूप और गुण तक चित्रण (स्मृति) में रहता है। स्वभाव का बोध होता है। अनुभव-प्रमाण बोध होना (अनुभव मूलक विधि से) - मतलब, धर्म-बोध होना। इस तरह धर्म और स्वभाव जुड़ गया। वही चित्त के स्तर पर आ कर रूप और गुण से जुड़ता है। इसकी जब तर्क-सांगत व्याख्या करने जाते हैं तो वह फैलने लगता है। इस तरह हम धर्म की व्याख्या करने योग्य हो जाते हैं।
अध्ययन विधि से अनुभव multiply होता है - ऐसा मैं शुरू किया हूँ। अनुभव multiply होने पर ही संसार का कल्याण है, सर्व-शुभ है। इसमें समानता का स्वरूप निकलता है। अगर एक ही व्यक्ति अनुभव कर सकता तो समानता हो ही नहीं सकती थी। अनुभव के बाद सभी समान हैं।
अनुभव तक अध्ययन है। उसके पहले सूचना है। उससे पहले संपर्क है।
संपर्क के बाद ही सूचना है। बिना संपर्क साधे सूचना कैसे दोगे?
सूचना के बाद ही अध्ययन है। बिना सटीक सूचना के अध्ययन कैसे करोगे?
अध्ययन के बाद ही अनुभव है। बिना अध्ययन किए अनुभव कैसे करोगे?
अनुभव के बाद ही प्रमाण है। बिना अनुभव के प्रमाणित क्या करोगे?
- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (अप्रैल २००८, अमरकंटक)
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