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Sunday, December 14, 2008

ज्ञान

व्यापक ही ज्ञान है। ज्ञान में सभी अवस्थाओं का स्वभाव और धर्म निहित होता है। क्रिया में रूप और गुण रहता है। ज्ञान और क्रिया का सह-अस्तित्व है।

स्वभाव और धर्म समझ में आने के बाद मानव को सह-अस्तित्व में बोध होना बन जाता है। सह-अस्तित्व में बोध होना मतलब पूरा अस्तित्व ही समझ में आ जाना।

चारों अवस्थाओं में स्वभाव और धर्म ज्ञान स्वरूप में है - यह मुझ को समझ में आया। अभी तक यह न भौतिकवादी विधि से सफल हुआ था, न आदर्शवादी विधि से। आदर्शवादियों ने जगत को मिथ्या बता कर टाल दिया। भौतिकवादियों ने यंत्र में ले जाकर लटका दिया। इस तरह हम "समझ" से चूक गए। अब विधि यही है - पूरा समझें - और समझ के अनुसार जियें।

- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (अप्रैल २००८, अमरकंटक)

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