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Monday, December 15, 2008

तर्क की सीमा

तर्क साक्षात्कार तक पहुंचाने के लिए agency है। शब्द का अर्थ होता है - यहाँ तक तर्क है। अर्थ के साथ कोई तर्क नहीं है। इसी का नाम है - साक्षात्कार। अर्थ का मतलब है - अस्तित्व में वस्तु। अर्थ के साथ क्या तर्क करोगे? शब्द का अर्थ समझ में आया = साक्षात्कार हुआ। साक्षात्कार के बाद बोध ही है, अनुभव ही है, अनुभव-प्रमाण बोध ही है, प्रमाणित होने का संकल्प ही है। इतने तक में कोई तर्क नहीं है। अनुभव मूलक विधि से चिंतन करते हुए प्रमाणित होने के लिए जो चित्रण करते हैं - वहाँ से फ़िर तर्क का उपयोग है। सम्प्रेश्ना का तर्क सम्मत होना आवश्यक है - तभी वह शिक्षा में आ सकता है।

साक्षात्कार होता गया तो अनुभव की सम्भावना उदय होता गया। साक्षात्कार पूरा होने पर बोध और अनुभव होता ही है। साक्षात्कार होने से तृप्ति की सम्भावना उदय हो जाती है। तृप्ति अनुभव के बाद ही है। दसों क्रियाएं प्रमाणित होने पर ही जीवन-तृप्ति होती है, इससे पहले नहीं।

- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (अप्रैल २००८, अमरकंटक)

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