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Thursday, April 2, 2009

मंगल-मैत्री की आधार-भूमि सर्व-शुभ ही है.

प्रश्न: आप सह-अस्तित्व में अनुभव में ही "समझ" को ध्रुवीकृत करते हैंअभी अध्ययन-क्रम में हम उस बिन्दु तक पहुंचे नहीं हैंऐसे में अध्ययन-रत साथियों में मंगल-मैत्री का क्या आधार हो?

उत्तर: मंगल-मैत्री की आधार-भूमि सर्व-शुभ ही है।

(१) ये सब लोग सर्व-शुभ चाहने वाले हैं, सर्व-शुभ के कार्य में लगे हैं। वैसे ही मैं भी हूँ।
(२) सर्व-शुभ से ही अपने-पराये की दीवार गिरती हैं, और अपराध-मुक्ति होती है।
(३) इसी लिए ये मेरे साथी हैं, और उनके साथ मैत्री स्वाभाविक है।

इसमें क्या कोई अतिवाद है?
इसमें क्या कोई खोट है?
इसमें क्या कोई व्यक्तिवाद है?
इसमें क्या कोई समुदायवाद है?

इसको आप तर्क विधि से सोच लीजिये। तर्क से अधिक कल्पना होता है। इसको आप कल्पना विधि से भी सोच कर देखिये।

इस ढंग से हम मंगल-मैत्री का रास्ता साफ़ देख पाते हैं। सबके साथ हम जी सकते हैं, रह सकते हैं। अपने साथियों के प्रति शुभकामना व्यक्त कर सकते हैं। उनके सर्व-शुभ कार्यों की सफलता के लिए हम प्रसन्न और रोमांचित भी हो सकते हैं।

- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (जनवरी २००७, अमरकंटक)

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