अनुभव व्यापक में सम्पृक्तता का होता है। अकेले व्यापक नहीं है। अनुभव करने वाला नहीं हो तो व्यापक कहाँ/किसको समझ में आता है? अनुभव करने वाले के साथ में ही अनुभव होता है। अनुभव करने वाला व्यापक में ही है। अनुभव करने वाला अपने से अधिक का अनुभव करता है, समानता और कम को पहचानता है। समान और समान से कम के साथ व्यवहार और कार्य होता है। समान से अधिक के साथ अनुभव ही होता है।
अनुभव स्थिति में होता है। अनुभव का प्रमाण व्यवहार में संबंधों में प्रमाणित होता है।
हम अनुभव को प्रस्तुत नहीं करते हैं। अनुभव हुआ, इसका प्रमाण जीने में प्रस्तुत करते हैं।
अनुभव शाश्वतीयता के अर्थ में है। अनुक्रम से होने के अर्थ में है। एक से एक जुड़ कर होने के रूप में है। इसका नाम है - सह-अस्तित्व। सह-अस्तित्व में जड़-प्रकृति होना अनुक्रम है। अनुक्रम होने से अनुप्राणित रहना हुआ। सम्पृक्तता वश अनुप्राणित रहना होता है। अनुप्राणित रहने से चार स्वरूप में व्यक्त हो गया - विकास-क्रम, विकास, जागृति-क्रम, जागृति।
- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (जनवरी २००७, अमरकंटक )
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