अनुभव करना हर व्यक्ति के लिए समीचीन है। समीचीन का मतलब निकटवर्ती है।
अनुभव करना उतना ही दूर है, जितना तीव्रता से हम अनुभव करना चाहते हैं। चाहत में वरीयता आने के बाद देर नहीं लगता। अनुभव-पूर्वक ही मैं मानवीयता को प्रमाणित कर सकता हूँ - जब यह निश्चयन स्वयं में हो जाता है - तब अध्ययन के लिए मन लगना शुरू होता है। जब तक यह निश्चयन नहीं होता, तब तक प्रस्ताव में कमी निकालने में ही मन लगा रहता है। कमी निकालना कोई अध्ययन नहीं है।
सच्चाई कोई मनुष्य से दूर नहीं है। इसीलिये सच्चाई में अनुभव करना मनुष्य के लिए निकटवर्ती है। सच्चाई को स्वीकारने में मनुष्य आनाकानी करता है, उसके लिए इधर-उधर का भटकाव रखा हुआ ही है। अध्ययन के लिए मन लगाना ही पड़ता है। अध्ययन के लिए मन लगाना ही पुरुषार्थ है। अर्थ यदि अस्तित्व में वस्तु के स्वरूप में समझ में आ जाता है, तो आदमी पार पा जाता है। मैंने भी यही भर किया है। अस्तित्व में मैंने वास्तविकताओं को पहचाना है, उसी के अनुरूप परिभाषाएं दी हैं। परिभाषाओं से अस्तित्व में वस्तु इंगित होती है, मनुष्य को। इंगित होने का अधिकार हर व्यक्ति में कल्पनाशीलता के रूप में रखा है। हर मनुष्य-जीवन कल्पनाशीलता को प्रकट करता है। यह हर मनुष्य की मौलिकता है। ईश्वरवाद ने उपदेश-विधि से इस मौलिकता का अवमूल्यन किया। भौतिकवाद ने भोग-वाद को ला कर इस मनुष्य की इस मौलिकता का निर्मुल्यन किया। अब सार्थकता क्या है - आप सोच लो!
अनुभव मूलक विधि से अनुभव-गामी पद्दति (अध्ययन विधि) को तैयार करने का काम मैंने किया है। यह संसार में अभी तक नहीं हो पाया था। सूचना, सूचना का पठन, पठन से अध्ययन, अध्ययन के बाद वस्तु से तदाकार होना, वस्तु के साथ अपने सम्बन्ध की पहचान होना, फ़िर जीने में संबंधों का निर्वाह होना - यही कुल मिला कर क्रम है।
प्रश्न: हम जब मध्यस्थ-दर्शन के आपके प्रस्ताव को सुनते हैं, सोचते हैं - तो कभी-कभी हमको लगता है, कुछ समझ में आ गया। क्या वही साक्षात्कार है?
उत्तर: नहीं। अध्ययन के बाद साक्षात्कार है।
प्रश्न: फ़िर वह जो लगता है "कुछ समझ आ गया" - वह क्या है?
उत्तर: वह आपकी इस प्रस्ताव के प्रति स्वीकृति है, जो detail के साथ अभी channelize नहीं हुआ है। detail के साथ channelize होने का सिलसिला अभी शुरू नहीं हुआ। वह सिलसिला बनने का तड़प आप में रखा हुआ ही है। वह सिलसिला बनने के लिए एक मात्र विधि अध्ययन ही है। एक-एक बात का जो आप अध्ययन करते हो, उसका एक दूसरे के साथ सम्बन्ध-सूत्र फैलता है। वह सम्बन्ध-सूत्र अनुभव में जा कर स्थिर होता है।
साक्षात्कार का मतलब है - अध्ययन पूर्वक स्वयं में हुई स्वीकृति के अनुरूप अस्तित्व में वास्तविकताओं के साथ तदाकार होना। साक्षात्कार अधूरा नहीं होता।
अनुक्रम से अनुभव होता है। मनुष्य जीव-अवस्था के साथ कैसे अनुप्राणित है, सम्बंधित है? जीव-अवस्था प्राण-अवस्था के साथ कैसे अनुप्राणित है, सम्बंधित है? प्राण-अवस्था पदार्थ-अवस्था के साथ कैसे अनुप्राणित है, सम्बंधित है? पुनः इन चारों अवस्थाओं का क्या अन्तर-सम्बन्ध है? शरीर का जीवन के साथ सम्बन्ध, जीवन का जीवन के साथ सम्बन्ध - ये सब जुडी हई कड़ियों को पहचानना ही अनुक्रम है।
प्रश्न: साक्षात्कार हुआ है, इसका क्या प्रमाण है?
उत्तर: समझ में आना ही साक्षात्कार होने का प्रमाण है। अस्तित्व में वास्तविकताओं के प्रयोजन को पहचान पाना, और निर्वाह कर पाना ही साक्षात्कार होने का प्रमाण है।
- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००६, अमरकंटक )
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