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Monday, April 20, 2009

शब्द, अर्थ, वस्तु

प्रश्न: आप अपनी बात भाषा का प्रयोग करके कहते हैं। जिसको मैं सोचता हूँ। लेकिन मेरे सोचने में भी भाषा का पुट तो है - फ़िर मेरा समझना कब हुआ?

उत्तर: भाषा संप्रेषित होने या व्यक्त होने के लिए माध्यम है। हर मनुष्य-जीवन में उसके अर्थ को तदाकार-तद्रूप विधि से समझने का अधिकार रखा हुआ है। समझ की जगह में भाषा नहीं है। समझने में शब्द-मुक्ति है। व्यक्त होने के लिए शब्द है। समझ शब्द नहीं है। समझ को शब्द द्वारा व्यक्त करते हैं।

शब्द के द्वारा हम अर्थ को पहचानते हैं। अर्थ के द्वारा वस्तु को पहचानते हैं। वस्तु के साथ हम तदाकार होते हैं। फलस्वरूप समझ में आता है। तदाकार होने का अधिकार हर मनुष्य-जीवन में रखा हुआ है। यह हर मनुष्य में प्रकृति-प्रदत्त विधि से है। इसको मनुष्य को बनाना नहीं है। इसका केवल अध्ययन के लिए प्रयोग करना है।

प्रश्न: आप कहते हैं - "समझने में तर्क नहीं है।" इससे क्या आशय है?

उत्तर: साक्षात्कार, बोध, अनुभव, अनुभव-प्रमाण बोध, फ़िर चिंतन तक तर्क कुछ भी नहीं है। तर्क लगाते हैं, तो अनुभव को हम नकार दिए, दूर कर दिए। अनुभव मूलक विधि से न्याय-धर्म-सत्य को प्रमाणित करने के लिए जब तुलन में लाये तो वह "तर्क संगत" हो गया। इस तरह असीम ज्ञान को तर्क-सीमा में लाना बनता है। यह जीवन में निहित विधि है। जीवन में ही यह विधि है - और किसी वस्तु में नहीं है। इस विधि से असीम ज्ञान को संप्रेषित करने के लिए ६ सूत्रों में ले आए - नियम, नियंत्रण, संतुलन, न्याय, धर्म, और सत्य। क्यों ले आए? दूसरों को अध्ययन कराने के लिए। जिससे जागृति की परम्परा बन सके।

समझ को प्रमाणित करने के लिए भौतिक-रासायनिक संसार का कैसे उपयोग करना है, उसके लिए तर्क है। शरीर भी एक भौतिक-रासायनिक रचना है। शरीर का समझ को प्रमाणित करने के लिए कैसे उपयोग करना है - उसके लिए तर्क है।

जीवन के साथ कोई तर्क नहीं है। आप सोचते हो, मैं भी सोचता हूँ। इसमें तर्क क्या हुआ?

समाधान के साथ कोई तर्क नहीं है। करके देखिये आप समाधान के साथ तर्क! कुछ तर्क बनता ही नहीं है। समाधान को केवल स्वीकारना और प्रमाणित करना ही बनता है।

व्यर्थ का तर्क कुंठा तक ही ले जाता है।

मध्यस्थ-दर्शन मनुष्य के समाधानित होने के लिए अस्तित्व की समझ का प्रस्ताव है। इसको समझने में कोई तर्क नहीं है।

- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (दिसम्बर २००८, अमरकंटक)

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