ANNOUNCEMENTS



Monday, April 27, 2009

जीवन, मेधस, और स्मृति

जीवन एक परमाणु है। उसमें ६१ क्रियाकलाप हैं - जो परावर्तन और प्रत्यावर्तन विधि से १२२ क्रियाएं हैं। जीवन का गति मनोवेग के बराबर है। मनोगति अक्षय गति है - जो गणित से परे है। मनोगति से चलता जीवन प्राण-कोशिकाओं के मध्य से चलता रहता है। उसकी गति से बनने वाला जो वातावरण है, वह एक तरंग को पैदा करता है। मन मेधस पर कैसा संकेत देना है, वैसा तरंग पैदा होता है। मेधस में स्नायु-तंत्र का गुच्छा रसायन-जल में तैरता रहता है। रसायन-जल में जीवन तरंग प्रसारित करता है। उन तरंगो को स्नायुएं पढ़ लेते हैं। मेधस तंत्र में जो सूक्ष्म तंतुएं या स्नायुएं बनी हैं, उनमें यह अभ्यास है। स्नायुएं पुनः जो रसायन-जल में तरंग पैदा करते हैं, उनको जीवन पढ़ लेता है। स्नायु-तंत्र के आधार पर मांस-पेशियाँ काम करते हैं। मांस-पेशियों और स्नायु-तंत्र के अनुसार हड्डियाँ काम करती हैं।

हर कार्य को समझने/सीखने का तंत्र जीवन ही है, तथा उस सीख/समझ को शरीर द्वारा गतिशील बनाने का स्त्रोत भी जीवन ही है।

स्मरण-शक्ति जीवन में होता है, मेधस में नहीं होता। अभी के प्रचलित-विज्ञान की जबरदस्ती है कि स्मरण मेधस में रखा है। मेधस में जीवन के संकेतो को ग्रहण करना, और जीवन के लिए संकेतों को प्रसारित करना - यही काम चलता रहता है। स्मरण जीवन का काम है। जीवन में ही कल्पनाशीलता है। कल्पनाशीलता से जीवन बहुत सारी चीजों को कल्पित करता है, बहुत सारी चीजों को शरीर द्वारा क्रियान्वयन करता है। जो क्रियान्वयन करता है, उसका आंकलन करता है - वही स्मरण है। कई बातों को सकारा रहता है, कई बातों को नकारा रहता है - यही स्मरण है। चित्त में चित्रण के रूप में सारी स्मृतियाँ बनी हैं। विचार याद आना - यह भी स्मृति का काम है। विश्लेषण वृत्ति की क्रिया है - उसका स्मृति चित्त में है। चयन मन की क्रिया है - उसकी स्मृति चित्त ही बनाए रखता है। मन जो आस्वादन करता है, उसका स्मृति चित्त में ही बना रहता है। तुलन जो वृत्ति करता है, उसकी स्मृति चित्त ही बना कर रखता है। उसके बाद आत्मा जब अनुभव करता है - उसकी स्मृति भी चित्त में बनी रहती है। अनुभव का भी स्मरण चित्त में रहता है। आत्मा और बुद्धि क्रिया के रूप में कार्यरत रहते हैं। स्मरण भी एक क्रिया ही है।

स्मृतियाँ मानव-परम्परा में अति-आवश्यकीय भाग है। समझदारी को व्यक्त करने के लिए स्मृति चाहिए। ईमानदारी को व्यक्त करने के लिए स्मृति चाहिए। जिम्मेदारी को व्यक्त करने के लिए स्मृति चाहिए। भागीदारी को व्यक्त करने के लिए स्मृति चाहिए।

प्रश्न: इससे पहले कौनसी शरीर-यात्राएं रही, इसकी कोई स्मृति क्यों नहीं रहती?

उत्तर: इस शरीर-यात्रा से पहले कौनसी शरीर-यात्राएं की थी - इसका कोई मतलब भी नहीं है। उससे कोई प्रयोजन भी नहीं है। शरीर-यात्रा करना जीवन क्रिया है। हर जीव-शरीर और मनुष्य-शरीर में जो जीवन अब काम कर रहा है, वह पहले बहुत सारे शरीर-यात्रा कर चुका है। किस शरीर को चलाया? - इसका कोई मतलब नहीं है। शरीर को चलाने वाले जीवन का ज्ञान हो गया। जीवन शरीर को चलाता है, यह पता चल गया।

- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (जनवरी २००७, अमरकंटक)

6 comments:

Gopal said...

Dear Rakesh,

So it appears like, our decision making ( choosing ) , about any physical action is directly results into a specific kind of movement of jeevan. Whatver happens in mun ( outermost orbit ) is somehow directly related with movement of jeevan. That is why Baba called it manogati ( speed of mun ). So activity inside mun results into a signal for the brain. Similarly outside activity or waves affect the movement of jeevan , hence the activity inside mun and that is how jeevan reads the signal from brain.

Would you like to add more details to this, whatever thoughts you might have. It ultimately helps in getting clarity.

Regards,
Gopal.

Rakesh Gupta said...

Nothing much to add on this... This is the mechanism of Jeevan's working with body/brain.

You said - "Whatver happens in mun ( outermost orbit ) is somehow directly related with movement of jeevan."

mun is inseparable part of jeevan which interfaces with brain. jeevan is I. Mun is an inseparable dimension of I (self).

"activity inside mun" also doesn't make sense... Since it indicates mun is a container and something inside it is active. It needs to be seen as "activity of mun".

Thirdly, mun works in conjunction with vritti (thoughts) and chitta (desires/ichchha). The study in coexistence leads to activating the dormant faculties of jeevan - i.e. buddhi and atma. And with that mun, vritti, chitta, and buddhi become aligned with anuhav
in atma. This is what is termed as awakening.

Regards,
Rakesh

Gopal said...

Thanks Rakesh,

I agree with your comments. Jeevan itself does these activities of mun, vritti, chitta, budhdi and atma ( where last 2 are dormant until awakened ) and can be seen as being active in various orbits. I am trying to visualize the jeevan 's intercation with brain. The key point here I am trying to make is the activities of mun are somehow directly related with the movement of jeevan. The mun is the interface of jeevan with rest of the world. The activities of mun results into actual physical movement of jeevan which results into signals for brain. That is probably the reason Baba called jeevan to be moving with manogati.

Plz. let me know if my visualization matches with yours.

Regards,
Gopal.

Rakesh Gupta said...

Yes... The proposal is that mun is the interface of jeevan with brain. And jeevan (of self) therefore functions with manogati. Manogati is a conscious-activity (which is wanting to choose, taste), which is inexhaustible. The body which it uses is exhaustible.

Now having got this into our visualization - we want to be established whether it is really so. This requires close self-examination. The subtleness in our observation of our own self's working under the light of this proposal - can be called paying attention, or meditation. This acute observation of self, and its inter-relationships as coexistence in the light of this proposal leads to building one's readiness for direct-observation (sakshatkar) of existence. Sakshatkar is not a visualization, or a verbal construct - it is confrontation with the reality as it is. It's then the dormant activities of self get activated - and jeevan (self) becomes fulfilled. This is the purpose or objective of the study we are doing here.

regards,
Rakesh...

Gopal said...

Thanks Rakesh,

These are very valuable comments to focus our efforts further. And this is what I am trying to do. I am trying to actually see this working. Trying to actually see/understand what I visualized, in reality.

Visualtization is nothing but getting the information corectly. If the information visualized itself not correct or your visualization itself is not correct, directing effort to see that in reality might take more time and ultimately it is going to fail because reality will be different.

Best Regards,
Gopal.

Rakesh Gupta said...

I fully agree with you. Information needs to be correct and complete. It is the first step. Also, it is the limit of this medium of communication.

Thanks and Regards,
Rakesh.