भाषा का प्रयोजन है - एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को अपनी बात पहुंचाना। भाषा के तीन स्वरूप हम देखते हैं - (१) शरीर-विन्यास से भाषा, (२) लिपि से भाषा, (३) बोलने वाली भाषा। शरीर के विन्यास वाली भाषा (gesture language) को आदमी बहुत समय तक ले कर चला है। मूक-बधिरों के साथ आज भी इस भाषा का प्रयोग होता है। उसके बाद शब्द को भाषा स्वरूप दिया तो लिखने का एक आकार बनी। अक्षरों के संयोजन से शब्द बना। शब्दों के संयोजन से वाक्य बना। वाक्यों के संयोजन से ग्रन्थ बने। परम्परा में हर प्रकार की भाषाओँ के लिखने के अपने-अपने आकार हैं। उच्चारण करने का एक तरीका है। हर भाषा को समझने की अपनी विधि है - व्याकरण के रूप में। इन तीनो को मिला कर अनेक भाषाओँ का प्रयोग संसार में चल रहा है। उसमें से बहुत सारे भाषाएँ लिखित हैं, कुछ अलिखित भाषाएँ भी हैं। मैंने जहाँ शरीर-यात्रा शुरू किया - वहाँ "संकेत-भाषा" अलिखित रूप में है। जैसे आम लोग लिखित-भाषा से काम करते हैं, वैसे वे अलिखित भाषा से काम कर लेते हैं।
प्रश्न: मानव-भाषा का मूल आशय क्या है? क्या समझने के लिए भाषा है?
इसका उत्तर है - कारण, गुण, गणित को समझना। हर क्रिया के साथ कारण है, हर क्रिया के साथ गुण है, हर क्रिया का गणित के साथ कुछ दूर तक सम्बन्ध है। गणित से ज्यादा गहराई में गुण काम करता है। फ़िर सम्पूर्ण क्रिया के साथ कारण सम्बद्ध रहता है। इस आधार पर कारण, गुण, गणित के संयुक्त रूप में मानव-भाषा है। इसे हर भाषा में समानान्तर रूप में पहचाना जा सकता है।
जब आप कोई भाषा को प्रस्तुत करते हैं - तो किस आशय से किया, उसका अनुमान मुझ में होता है। वह अनुमान उस भाषा के अर्थ को छुआ रहता है। वह अर्थ - अस्तित्व में किसी स्थिति, गति, फल, परिणाम को इंगित करता है। यह हमारी कल्पना में आता है। कल्पना के अनुसार जब आगे चलते हैं तो उस वस्तु या घटना तक पहुँचते हैं। घटना घटित जो हुआ - वह वस्तु ही है। घटना जो होने वाला है - वह अनुमान है। घटना जो आचरण में रहता है, या वर्तमान रहता है - उसको हम समझ पाते हैं। इस तरह हम कारण-गुण-गणित विधि से हर वर्तमान-भूत-भविष्य की घटनाओं को स्वीकार कर पाते हैं। उसके अनुसार श्रेष्ठता के लिए प्रयत्न करते हैं।
प्रश्न: मैं जब कुछ भाषा बोलता हूँ, तो उस प्रक्रिया में क्या-क्या होता है?
उत्तर: कुछ आप बोलते हैं, उसके मूल में आप के जीवन में इच्छा है - अपनी स्मृति को प्रकट करने के लिए। आप कुछ भी बोलते हैं, उसका स्मृति आप के पास रहता ही है। तीन तरह की स्मृतियाँ रहती हैं - घटी हुई घटना के रूप में, प्राप्ति के रूप में, और अपेक्षा के रूप में। जैसे - आपने "मामा" बोला। तो उसके मूल में मामा का स्मृति आपके जीवन में रहता ही है। यह चित्त से वृत्ति, वृत्ति से मन, मन से मेधस, मेधस से स्नायु-तंत्र, स्नायु-तंत्र से गल-तंत्र तक आ गया। गल-तंत्र में स्वर-ग्रंथि में उससे हलचल हुई। आपके उच्चारण का स्पष्टीकरण स्वर-ग्रंथि में हुआ। स्वर-ग्रंथि से गल-ग्रंथि तक, उससे जीभ, होठ, गाल, और तालू के योगफल में शब्द बनकर दूसरों तक पहुँचा। यह हर भाषा के साथ है। फ़िर सामने वाला इस बात को स्वीकारता है कि आप किस बात के लिए शब्द का प्रयोग किए।
शब्द दो प्रकार से समझ में आते हैं - भाषा के रूप में, और ध्वनी के रूप में। ध्वनी के एक तरीके को ही हम भाषा कहते हैं। भाषा में अर्थ होता है। ध्वनी में शब्द भर होता है। सुनने में अच्छा लगे ऐसी ध्वनी को संगीत से जोड़ा गया। भाषा में शब्द दो प्रकार के हैं - अर्थात्मक, और निरर्थक। अर्थ-संगत शब्द दर्शन, विचार, और शास्त्र के लिए उपयोगी हुए। एक-दूसरे के साथ भाषा इस तरह ज्ञान को स्पष्ट करने के अर्थ में प्रयुक्त हुई।
- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (जनवरी २००७, अमरकंटक)
No comments:
Post a Comment